उत्तरी ध्रुव
उत्तरी ध्रुवीय क्षेत्र।
उत्तरी ध्रुव हमारे ग्रह पृथ्वी का सबसे सुदूर उत्तरी बिन्दु है। यह वह बिन्दु है जहाँ पर पृथ्वी की धुरी घूमती है। यह आर्कटिक महासागर में पड़ता है और यहाँ अत्यधिक ठंड पड़ती है क्योंकि लगभग छः महीने यहाँ सूरज नहीं चमकता है। ध्रुव के आसपास का महासागर बहुत ठंडा है और सदैव बर्फ़ की मोटी चादर से ढका रहता है। इस भौगोलिक उत्तरी ध्रुव के निकट ही चुम्बकीय उत्तरी ध्रुव है, इसी चुम्बकीय उत्तरी ध्रुव की ओर ही कम्पास की सुई संकेत करती है। उत्तरी तारा या ध्रुव तारा उत्तरी ध्रुव के आकाश पर सदैव निकलता है। सदियों से नाविक इसी तारे को देखकर ये अनुमान लगाते रहे है की वे उत्तर में कितनी दूर हैं। यह क्षेत्र आर्कटिक घेरा भी कहलाता है क्योंकि वहां अर्धरात्रि के सूर्य (मिडनाइट सन) और ध्रुवीय रात (पोलर नाइट) का दृश्य भी देखने को मिलता है। उत्तरी ध्रुव क्षेत्र को आर्कटिक क्षेत्र भी कहा जाता है। यहां बर्फ से ढंके विशाल क्षेत्र के अतिरिक्त आर्कटिक सागर भी है। यह सागर अन्य कई देशों जैसे कनाडा, ग्रीनलैंड, रूस, अमेरिका, आइसलैंड, नॉर्वे, स्वीडन और फिनलैंड की जमीनों से लगा हुआ है। इसे अंध महासागर का उत्तरी छोर भी कहा जा सकता है।[1]
जलवायु
आर्कटिक का एक दृश्य।
उत्तरी ध्रुव, दक्षिणी ध्रुव की तुलना में कम ठंडा है क्योंकि यह महासागर के मध्य में समुद्र स्तर पर स्थित है (जो गर्मी के संग्रह के रूप में कार्य करता है), नाकी महाद्वीपीय भूभाग में किसी ऊँचाई पर। सर्दियों में (जनवरी) यहाँ का तापमान −४३ °से से −२६ °से के बीच रहता है और औसत लगभग −३४ °से होता है। गर्मियों में (जून, जुलाई और अगस्त) में तापमान का औसत जमाव बिन्दु (० °से) के आसपास रहता है।[2] उत्तरी ध्रुव में समुद्र पर जमी बर्फ़ की परत २ से ३ मीटर तक मोटी होती है,[3] यद्यपि इसमें बहुत परिवर्तन पाया जाता है और कभी-कभी तैरते हुए हिमखण्डों के नीचे साफ़ पानी दिख जाता है।[4] कई शोधों से ये ज्ञात हुआ है कि पिछ्ले कुछ वर्षों में यहाँ बर्फ़ की परतों की औसत मोटाई में कुछ कमी आई है।[5] बहुत से लोग इसका कारण वैश्विक ऊष्मीकरण को बताते हैं, पर इसपर कुछ विवाद है। कुछ प्रतिवेदनों के अनुसार आने वाले कुछ दशकों में गर्मियों के मौसम में आर्कटिक महासागर पूरी तरह बर्फ़ रहित होगा,[6]और इसके महत्वपूर्ण वाणिज्यिक निहितार्थ होंगे।
वनस्पतियाँ और जीवजंतु
ध्रुवीय भालू।
इस क्षेत्र में वनस्पति बहुत कम मिलती है। यहां के सागर के पानी में कई तरह के प्लैंक्टन मिलते हैं। इसके अतिरिक्त, जमीन पर रहने वाले ध्रुवीय भालू और कुछ लोग भी यहां रहते हैं। इसके अनोखे भौगोलिक वातावरण के कारण यहां रहने वाले लोगों ने स्वयं को वातावरण के अनुसार ढाल लिया है। गत कुछ दशकों में आर्कटिक क्षेत्र के बर्फीले सागर की बर्फ कम होनी शुरू हुई है।[1] यहाँ पाए जाने वाले कुछ पशु हैं, ध्रुवीय भालू और सील। भालू माँसाहारी होते है। ये पूरी सर्दियों के दौरान निष्क्रिय रहते हैं और आर्कटिक की गरमियों का मौसम आरंभ होते ही शिकार के लिए चल पड़ते हैं। भालुओं के बारे में ये माना जाता है की ये भोजन की कमी के कारण ८२° उत्तर से आगे नहीं जाते, यद्यपि इनके जाने के रास्ते उत्तरी ध्रुव के आसपास पाए गए हैं और २००६ के एक खोजकर्ता दल ने ये सूचना दी की एक ध्रुवीय भालु ध्रुव से मात्र १.६ किमी की दूरी पर देखा गया है। चक्राकार सील भी ध्रुव पर देखी गई है और आर्कटिक लोमड़ियाँ ध्रुव से ६० किमी दूर ८९°४०′ पर पाई गई हैं। ध्रुव के बहुत पास जो पक्षी देखे गए हैं वे हैं, हिम बंटिंग, उत्तरी फुल्मर और काली-टांगों वाली किटिवेक, यद्यपि कुछ पक्षियों के देखे जाने के समाचार तोड़े-मरोड़े भी हो सकते हैं, क्योंकि पक्षियों की प्रवृत्ति जहाज़ों और अभियान दलों का पीछा करने की होती है।
उत्तरी ध्रुव और आर्कटिक क्षेत्रों पर प्रादेशिक दावे
उत्तरी ध्रुव
अंतर्राष्ट्रीय कानूनों के अनुसार, वर्तमान में किसी भी देश का उत्तरी ध्रुव या आर्कटिक महासागरीय क्षेत्र पर अधिकार नहीं है। इसके आसपास के पाँच देश रूस, कनाडा, नॉर्वे, डेनमार्क (ग्रीनलैंड के द्वारा) और संयुक्त राज्य अमेरिका (अलास्का के द्वारा), अपनी सीमाओं के २०० नॉटिकल-मील (३७० किमी) तक के विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र तक सीमित हैं और इसके आगे के क्षेत्र का प्रशासन अंतर्राष्ट्रीय सीबेड प्राधिकरण के पास है।
२ अगस्त, २००७ को रूस ने आर्कटिक क्षेत्र पर अपनी दावेदारी सुदृढ़ करने के लिए अपना राष्ट्रीय ध्वज आर्कटिक की समुद्री सतह पर लगा दिया, हालांकि इसे अन्तर्राष्ट्रीय सहमति प्राप्त नहीं है।[7]
अन्य खनिज
कई तरह के पदार्थ भी इस क्षेत्र में मिलते हैं। तेल, गैस, खनिज यहां मिलते हैं। कई किस्म की जैव विविधता यहां प्राकृतिक तौर पर संरक्षित है। हालांकि मनुष्य के यहां आ पहुंचने से कुछ समस्याएं उठी हैं। यह क्षेत्र पर्यटन व्यवसाय के लिये भी देखा जा रहा है। विश्व के कुल जल स्रोत का पांचवां भाग यहां है। इंटरनेशनल आर्कटिक साइंस कमेटी ने गत दस वर्षो में आर्कटिक क्षेत्र के बारे में कई नई जानकारियां जुटाई हैं। इस कमेटी में दुनिया भर के वैज्ञानिक और आर्कटिक विशेषज्ञ हैं।[1]
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