अशोक कुमार
पूरा नाम
कुमुद कुमार गांगुली
प्रसिद्ध नाम
अशोक कुमार
अन्य नाम
दादा मुनी
जन्म
13 अक्तूबर, 1911
जन्म भूमि
भागलपुर, बिहार
मृत्यु
10 दिसंबर, 2001
मृत्यु स्थान
मुम्बई
अभिभावक
कुंजलाल गांगुली
कर्म भूमि
मुम्बई
कर्म-क्षेत्र
फ़िल्म संगीत, अभिनय, निर्देशक, निर्माता, गीतकार
मुख्य फ़िल्में
अछूत कन्या, इज्जत, सावित्री, निर्मला
शिक्षा
स्नातक
विद्यालय
इलाहाबाद विश्वविद्यालय
पुरस्कार-उपाधि
दादा साहब फाल्के पुरस्कार, पद्म भूषण, संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार
नागरिकता
भारतीय
अशोक कुमार (अंग्रेज़ी: Ashok Kumar, जन्म: 13 अक्तूबर, 1911 - मृत्यु: 10 दिसंबर, 2000) हिन्दी फ़िल्मों के प्रसिद्ध अभिनेता, निर्माता-निर्देशक थे। अशोक कुमार को सन् 1999 में भारत सरकार ने कला के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया था। हिन्दी सिनेमा के युगपुरुष कुमुद कुमार गांगुली उर्फ अशोक कुमार को ऐसे अभिनेता के रूप में याद किया जाता है जिन्होंने उस समय प्रचलित थियेटर शैली को समाप्त कर अभिनय को स्वाभाविकता प्रदान की और छह दशकों तक अपने बेहतरीन काम से सिनेप्रेमियों को रोमांचित किया।[1] अशोक कुमार का असली नाम कुमुद गांगुली है। इन्हें दादा मुनी के नाम से जाना जाता है। अशोक कुमार ने 300 से ज़्यादा फ़िल्मों में अभिनय किया।
जीवन परिचय
अशोक कुमार का जन्म बिहार के भागलपुर शहर के आदमपुर मोहल्ले के एक मध्यम वर्गीय बंगाली परिवार में हुआ था। अशोक कुमार सभी भाई-बहनों में बड़े थे। उनके पिता कुंजलाल गांगुली मध्य प्रदेश के खंडवा में वकील थे।गायक एवं अभिनेता किशोर कुमार एवं अभिनेता अनूप कुमार उनके छोटे भाई थे। दरअसल इन दोनों को फ़िल्मों में आने की प्रेरणा भी अशोक कुमार से ही मिली। अशोक कुमार ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा मध्यप्रदेश के खंडवा शहर में प्राप्त की थी और बाद में अशोक कुमार ने अपनी स्नातक की शिक्षा इलाहाबाद विश्वविद्यालय से पूरी की थी। अशोक कुमार ने अभिनय की प्रचलित शैलियों को दरकिनार कर दिया और अपनी स्वाभाविक शैली विकसित की थी। वह कभी भी जोखिम लेने में नहीं घबराए और पहली बार हिन्दी सिनेमा में एंटी हीरो की भूमिका की थी।[1] अशोक कुमार ने सन् 1934 में न्यू थिएटर में बतौर लेबोरेट्री असिस्टेंट के रूप में काम किया था।
अशोक, अनूप और किशोर कुमार ने 'चलती का नाम गाड़ी' में काम किया। इस कॉमेडी फ़िल्म में भी अशोक कुमार ने बड़े भाई की भूमिका निभाई थी। फ़िल्म में मधुबाला ने भी काम किया था। किशोर कुमार ने अपने कई साक्षात्कारों में यह बात स्वीकार की थी कि उन्हें न केवल अभिनय बल्कि गाने की प्रेरणा भी अशोक कुमार से मिली थी क्योंकि अशोक कुमार ने बचपन में उनके भीतर बालगीतों के जरिए गायन के संस्कार डाले थे।[2]
अभिनय की शुरुआत
फ़िल्म जगत् में दादामुनी के नाम से लोकप्रिय अशोक कुमार के अभिनय सफर की शुरुआत किसी फ़िल्मी कहानी से कम नहीं थी। 1936 में बांबे टॉकीज स्टूडियो की फ़िल्म 'जीवन नैया' के अभिनेता अचानक बीमार हो गए और कंपनी को नए कलाकार की तलाश थी। ऐसी स्थिति में स्टूडियो के मालिक हिमांशु राय की नज़र आकर्षक व्यक्तित्व के धनी लैबोरेटरी असिस्टेंट अशोक कुमार पर पड़ी और उनसे अभिनय करने का प्रस्ताव दिया था। यहीं से उनके अभिनय का सफ़र शुरू हो गया। उनकी अगली फ़िल्म 'अछूत कन्या' थी। 1937 में प्रदर्शित फ़िल्म अछूत कन्या में देविका रानी उनकी नायिका थीं। यह फ़िल्म कामयाब रही और उसने दादामुनी को बड़े सितारों की श्रेणी में स्थापित कर दिया। उस ज़माने के लिहाज़ से यह महत्त्वपूर्ण फ़िल्म थी और इसी के साथ सामाजिक समस्याओं पर आधारित फ़िल्मों की शुरुआत हुई। देविका रानी के साथ उन्होंने आगे भी कई फ़िल्में की जिनमें 'इज्जत', 'सावित्री', 'निर्मला' आदि शामिल हैं। इसके बाद उनकी जोड़ी लीला चिटनिस के साथ बनी।[1]
सफलता
एक स्टार के रूप में अशोक कुमार की छवि 1943 में आई 'क़िस्मत' फ़िल्म से बनी। पर्दे पर सिगरेट का धुँआ उड़ाते अशोक कुमार ने राम की छवि वाले नायक के उस दौर में इस फ़िल्म के जरिए एंटी हीरो के पात्र को निभाने का जोखिम उठाया। यह जोखिम उनके लिए बेहद फ़ायदेमंद साबित हुआ और इस फ़िल्म ने सफलता के कई कीर्तिमान बनाए। उसी दशक में उनकी एक और फ़िल्म महल आई, जिसमें मधुबाला थीं। रोमांचक फ़िल्म महल को भी बेहद कामयाबी मिली। बाद के दिनों में जब हिन्दी सिनेमा में दिलीप, देव और राज की तिकड़ी की लोकप्रियता चरम पर थी, उस समय भी उनका अभिनय लोगों के सर चढ़कर बोलता रहा और उनकी फ़िल्में कामयाब होती रहीं। अपने दौर की अन्य अभिनेत्रियों के साथ-साथ अशोक कुमार ने मीना कुमारी के साथ भी कई फ़िल्मों में अभिनय किया जिनमें पाकीज़ा, बहू बेगम, एक ही रास्ता, बंदिश, आरती आदि शामिल हैं।[2] अशोक कुमार के अभिनय की चर्चा उनकी आशीर्वाद फ़िल्म के बिना अधूरी ही रहेगी। इस फ़िल्म में उन्होंने एकदम नए तरह के पात्र को निभाया। इस फ़िल्म में उनका गाया गीत रेलगाड़ी रेलगाड़ी.. काफ़ी लोकप्रिय हुआ था।
अशोक कुमार का फ़िल्मी सफ़र[3]
वर्ष
फ़िल्म
नायिका
निर्देशक
1936
जीवन नैया
देविका रानी
जन्मभूमि
देविका रानी
अछूत कन्या
देविका रानी
1937
सावित्री
देविका रानी
प्रेम कहानी
माया देवी
इज़्ज़त
देविका रानी
1938
वचन
देविका रानी
निर्मला
देविका रानी
1939
कंगन
लीला चिटनिस
1940
बंधन
लीला चिटनिस
आज़ाद
लीला चिटनिस
1941
नया संसार
लीला चिटनिस
झूला
लीला चिटनिस
अंजान
देविका रानी
1943
नज़मा
वीणा
क़िस्मत
मुमताज़ शांति
अंगूठी
चन्द्र प्रभा
1944
चल चल रे नौजवान
नसीम बानो
किरन
लीला चिटनिस
1945
हुमायूँ
वीणा
बेगम
नसीम बानो
1946
शिकारी
वीणा
एट डेज़
-
1947
चन्द्रशेखर
कानन देवी
साजन
रेहाना
1948
पदमिनी
मुमताज
1949
महल
मधुबाला
1950
आधी रात
नर्गिस
संग्राम
नलिनी जयवंत
मशाल
सुमित्रा देवी
निशाना
मधुबाला
समाधि
नलिनी जयवंत
खिलाड़ी
सुरैया
1951
दीदार
नर्गिस
अफ़साना
वीणा
1952
पूनम
कामिनी कौशल
तमाशा
मीना कुमारी
सलोनी
नलिनी जयवंत
बेताब
नसीम बानो
बेवफ़ा
नर्गिस
राग रंग
गीता बाली
नौ बहार
नलिनी जयवंत
काफ़िला
नलिनी जयवंत
जलपरी
नलिनी जयवंत
1953
शोले
बीना राय
शमशीर
भानुमति
परिणीता
मीना कुमारी
1954
नगमा
नादिरा
समाज
शशिकला
लकीरें
नलिनी जयवंत
बादबान
मीना कुमारी
1955
बंदिश
मीना कुमारी
सरदार
बीना राय
1956
इंस्पेक्टर
गीता बाली
एक ही रास्ता
मीना कुमारी
शतरंज
मीना कुमारी
भाई भाई
निरुपा राय
जीवनसाथी
ऊषा किरण
1957
मिस्टर एक्स
नलिनी जयवंत
उस्ताद
अंजलि देवी
बंदी
बीना राय
तलाश
बीना राय
एक साल
मधुबाला
शेरू
नलिनी जयवंत
1958
सवेरा
मीना कुमारी
चलती का नाम गाड़ी
मधुबाला
हावड़ा ब्रिज
मधुबाला
सितारों के आगे
वैजयंती माला
रागिनी
पद्मिनी
नाइट क्लब
कामिनी कौशल
कारीगर
निरुपा राय
लाइटहाउस
नूतन
फ़रिश्ता
मीना कुमारी
1959
बेदर्द ज़माना क्या जाने
निरुपा राय
कंगन
निरुपा राय
नई राहें
गीता बाली
डाका
निरुपा राय
बाप बेटे
श्यामा
धूल का फूल
माला सिन्हा
नाचघर
शोभा खोटे
1960
कल्पना
-
हौस्पिटल
-
क़ानून
-
काला आदमी
-
आँचल
-
मासूम
-
1961
डार्क स्ट्रीट
-
वारंट
-
फ्लैट नम्बर 9
-
धर्मपुत्र
-
1962
राखी
-
नकली नवाब
-
उम्मीद
-
प्राइवेट सेक्रेटरी
-
मेहेंदी लगी मेरे हाथ
-
इसी का नाम दुनिया
-
बर्मा रोड
-
आरती
-
1963
आज और कल
-
मेरे महबूब
-
मेरी सूरत तेरी आँखें
-
गुमराह
-
उस्तादों के उस्ताद
-
ये रास्ते हैं प्यार के
-
गृहस्थी
-
बन्दिनी
-
1964
दूज का चाँद
-
फूलों की सेज
-
बेनज़ीर
-
पूजा के फूल
-
चित्रलेखा
-
क्रॉसरोड्स
-
1965
चाँद और सूरज
-
बहू बेटी
-
आकाशदीप
-
नया क़ानून
-
ऊँचे लोग
-
भीगी रात
-
आधी रात के बाद
-
1966
ममता
-
दादी माँ
-
ये ज़िन्दगी कितनी हसीन है
-
तूफ़ान में प्यार कहाँ
-
अफ़साना
-
1967
मेहरबाँ
-
नई रोशनी
-
बहू बेगम
-
ज्वैलथीफ
-
1968
आबरू
-
दिल और मोहब्बत
-
साधू और शैतान
-
एक कली मुस्काई
-
आशीर्वाद
-
1969
आँसू बन गये फूल
-
दो भाई
-
पैसा या प्यार
-
इंतक़ाम
-
भाई बहन
-
प्यार का सपना
-
आराधना
-
सत्यकाम
-
1970
जवाब
-
शराफ़त
-
माँ और ममता
-
पूरब और पश्चिम
-
1971
अधिकार
-
नया ज़माना
दूर का राही
पाकीज़ा
कंगन
गंगा तेरा पानी अमृत
हम तुम और वो
गुड्डी
उम्मीद
सफ़र
1972
दिल दौलत दुनिया
राखी और हथकड़ी
रानी मेरा नाम
सा रे गा मा पा
विक्टोरिया नम्बर 203
मालिक
सज़ा
गरम मसाला
ज़मीन आसमान
अनुराग
ज़िन्दगी ज़िन्दगी
1973
हिफ़ाज़त
टैक्सी ड्राइवर
बड़ा कबूतर
दो फूल
धुंध
1974
ख़ून की कीमत
पैसे की गुड़िया
बढ़ती का नाम दाढ़ी
उजाला ही उजाला
प्रेम नगर
दुल्हन
दो आँखें
1975
आक्रमण
एक महल हो सपनों का
चोरी मेरा काम
मिली
छोटी सी बात
उलझन
दफ़ा 302
1976
भँवर
हरफन मौला
एक से बढ़कर एक
शंकर दादा
संतान
अर्जुन पंडित
मज़दूर जिंदाबाद
आप बीती
रंगीला रतन
बारूद
1977
अनुरोध
ड्रीम गर्ल
प्रायश्चित
चला मुरारी हीरो बनने
हीरा और पत्थर
मस्तान दादा
आनन्द आश्रम
जादू टोना
सफ़ेद झूठ
1978
खट्टा मीठा
तुम्हारे लिये
अपना क़ानून
दो मुसाफ़िर
चोर के घर चोर
प्रेमी गंगाराम
अनमोल तस्वीर
फूल खिले हैं गुलशन गुलशन
दिल और दीवार
1979
बगुला भगत
जनता हवलदार
अमर दीप
1980
सौ दिन सास के
जुदाई
ख़ूबसूरत
ज्योति बने ज्वाला
आख़िरी इंसाफ
ख़्वाब
साजन मेरे मैं साजन की
आप के दीवाने
टक्कर
नज़राना प्यार का
1981
जय यात्रा
महफ़िल
मान गये उस्ताद
शौक़ीन
ज्योति
1982
डायल 100
चलती का नाम ज़िन्दगी
संबंध
शक्ति
मेहंदी रंग लायेगी
दर्द का रिश्ता
अनोखा बंधन
1983
महान
काया पलट
लव इन गोआ
हादसा
चोर पुलिस
प्रेम तपस्या
बेकरार
पसन्द अपनी अपनी
तकदीर
1984
दुनिया
फ़रिश्ता
राम तेरा देश
हम लोग
राजा और राणा
अकलमंद
गृहस्थी
हम रहे ना हम
1985
एक डाकू शहर में
दुर्गा
फिर आई बरसात
भागो भूत आया
फर्ज की कीमत
तवायफ़
1986
भीम भवानी
प्यार किया है प्यार करेंगे
इंतक़ाम की आग
अम्मा
दहलीज़
कत्ल
असली नकली
शत्रु
1987
आवाम
हिफ़ाज़त
वो दिन आयेगा
वतन के रखवाले
प्यार की जीत
मिस्टर इण्डिया
जवाब हम देंगे
सुपरमैन
1988
फ़ैसला
भारत एक खोज
इन्तकाम
1989
ममता की छाँव में
क्लर्क
अनजाने रिश्ते
दाना पानी
सच्चाई की ताकत
मज़बूर
1991
मौत की सज़ा
आधि मिमांसा
1992
हमला
1993
आँसू बने अंगारे
1994
यूं ही कभी
1995
जमला हो जमला
मेरा दामाद
1996
रिटर्न ऑफ ज्वैलथीफ
दुश्मन दुनिया का
बेकाबू
1997
आँखों में तुम हो
चरित्र अभिनेता
अशोक कुमार ने बाद के जीवन में चरित्र अभिनेता की भूमिकाएँ निभानी शुरू कर दी थीं। इन भूमिकाओं में भी अशोक कुमार ने जीवंत अभिनय किया। अशोक कुमार गंभीर ही नहीं हास्य अभिनय में भी महारथ रखते थे। विक्टोरिया नंबर 203 फ़िल्म हो या शौक़ीन, अशोक कुमार ने हर किरदार में कुछ नया पैदा करने का प्रयास किया। उम्र बढ़ने के साथ ही उन्होंने सहायक और चरित्र अभिनेता का किरदार निभाना शुरू कर दिया लेकिन उनके अभिनय की ताजगी क़ायम रही। ऐसी फ़िल्मों में क़ानून, चलती का नाम गाड़ी, छोटी सी बात, मिली, ख़ूबसूरत, गुमराह, एक ही रास्ता, बंदिनी, ममता आदि शामिल हैं।[1] उन्होंने विलेन की भी भूमिका की। देव आनंद की ज्वैल थीफ़ में उन्होंने विलेन की भूमिका की थी।
फ़िल्म निर्माण
पचास के दशक मे बाम्बे टॉकीज से अलग होने के बाद उन्होंने अपनी खुद की कंपनी शुरू की और जूपिटर थिएटर को भी ख़रीद लिया। अशोक कुमार प्रोडक्शन के बैनर तले उन्होंने सबसे पहली फ़िल्म समाज का निर्माण किया, लेकिन यह फ़िल्म बॉक्स आफिस पर बुरी तरह असफल रही। इसके बाद उन्होनें अपने बैनर तले फ़िल्म परिणीता भी बनाई। लगभग तीन वर्ष के बाद फ़िल्म निर्माण क्षेत्र में घाटा होने के कारण उन्होंने अपनी प्रोडक्शन कंपनी बंद कर दी। 1953 में प्रदर्शित फ़िल्म 'परिणीता' के निर्माण के दौरान फ़िल्म के निर्देशक बिमल राय के साथ उनकी अनबन हो गई थी। जिसके कारण उन्होंने बिमल राय के साथ काम करना बंद कर दिया, लेकिन अभिनेत्री नूतन के कहने पर अशोक कुमार ने एक बार फिर से बिमल रॉय के साथ 1963 में प्रदर्शित फ़िल्म बंदिनी में काम किया। यह फ़िल्म हिन्दी फ़िल्म के इतिहास में आज भी क्लासिक फ़िल्मों में शुमार की जाती है। 1967 में प्रदर्शित फ़िल्म 'ज्वैलथीफ़' में अशोक कुमार के अभिनय का नया रूप दर्शको को देखने को मिला। इस फ़िल्म में वह अपने सिने कैरियर मे पहली बार खलनायक की भूमिका में दिखाई दिए। इस फ़िल्म के जरिए भी उन्होंने दर्शकों का भरपूर मनोरंजन किया। अभिनय में आई एकरुपता से बचने और स्वंय को चरित्र अभिनेता के रूप मे भी स्थापित करने के लिए अशोक कुमार ने खुद को विभिन्न भूमिकाओं में पेश किया। इनमें 1968 में प्रदर्शित फ़िल्म 'आर्शीवाद' ख़ास तौर पर उल्लेखनीय है। फ़िल्म में बेमिसाल अभिनय के लिए उनको सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इस फ़िल्म में उनका गाया गाना रेल गाड़ी-रेल गाड़ी बच्चों के बीच काफ़ी लोकप्रिय हुआ।
अन्य विशेषताएँ
'दादामुनी' मतलब बड़े भाई के नाम से मशहूर अशोक कुमार एक बेहतरीन चित्रकार, शतरंज खिलाड़ी, एक होम्योपैथ व कई भाषाओं के ज्ञाता भी थे। उन्होंने कई फ़िल्मों में स्वयं गाने भी गाए। फ़िल्म ही नहीं अशोक कुमार ने टीवी में भी काम किया। भारत के पहले सोप ओपेरा 'हम लोग' में उन्होंने सूत्रधार की भूमिका निभाई। सूत्रधार के रूप में अशोक कुमार 'हम लोग' के एक अभिन्न अंग बन गए। दर्शक आख़िर में की जाने वाली उनकी टिप्पणी का इंतज़ार करते थे क्योंकि वह टिप्पणी को हर बार अलग तरीके से दोहराते थे। इसके अलावा उन्होंने आख़िरी मुग़ल बादशाह बहादुर शाह जफ़र के जीवन पर आधारित धारावाहिक में भी बेहतरीन भूमिका निभाई।[2]
पुरस्कार
अशोक कुमार को फ़िल्मी सफर में कई पुरस्कारों से नवाज़ा गया और क़रीब छह दशक तक बेमिसाल अभिनय से दर्शकों को रोमांचित किया।
सन
पुरस्कार
1959
संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
1962
राखी फ़िल्म के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार मिला था।
1967
अफ़साना फ़िल्म के लिए सहायक अभिनेता का फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार मिला था।
1969
आशीर्वाद फ़िल्म के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार मिला था।
1969
आशीर्वाद फ़िल्म के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के लिए राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार मिला था।
1988
दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
1994
स्टार स्क्रीन लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
1995
फ़िल्मफ़ेयर लाइफटाइम एचीवमेंट अवार्ड से सम्मानित किया गया।
1999
पद्म भूषण से सम्मानित किया गया।
2001
उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा अवध सम्मान दिया गया।
2007
स्टार स्क्रीन की तरफ़ से "विशेष पुरस्कार" पुरस्कार से सम्मान दिया गया।
मृत्यु
क़रीब छह दशक तक बेमिसाल अभिनय से दर्शकों को रोमांचित करने वाले दादामुनी अशोक कुमार 10 दिसंबर2001 को इस दुनिया को अलविदा कह गए। वह आज भले ही हमारे बीच नहीं हो लेकिन वह क़रीब 275 फ़िल्मों की ऐसी विरासत छोड़ गए हैं जो हमेशा-हमेशा के लिए दर्शकों को सोचने, गुदगुदाने और रोमांचित करने के लिए पर्याप्त हैं।[1]
पूरा नाम
कुमुद कुमार गांगुली
प्रसिद्ध नाम
अशोक कुमार
अन्य नाम
दादा मुनी
जन्म
13 अक्तूबर, 1911
जन्म भूमि
भागलपुर, बिहार
मृत्यु
10 दिसंबर, 2001
मृत्यु स्थान
मुम्बई
अभिभावक
कुंजलाल गांगुली
कर्म भूमि
मुम्बई
कर्म-क्षेत्र
फ़िल्म संगीत, अभिनय, निर्देशक, निर्माता, गीतकार
मुख्य फ़िल्में
अछूत कन्या, इज्जत, सावित्री, निर्मला
शिक्षा
स्नातक
विद्यालय
इलाहाबाद विश्वविद्यालय
पुरस्कार-उपाधि
दादा साहब फाल्के पुरस्कार, पद्म भूषण, संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार
नागरिकता
भारतीय
अशोक कुमार (अंग्रेज़ी: Ashok Kumar, जन्म: 13 अक्तूबर, 1911 - मृत्यु: 10 दिसंबर, 2000) हिन्दी फ़िल्मों के प्रसिद्ध अभिनेता, निर्माता-निर्देशक थे। अशोक कुमार को सन् 1999 में भारत सरकार ने कला के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया था। हिन्दी सिनेमा के युगपुरुष कुमुद कुमार गांगुली उर्फ अशोक कुमार को ऐसे अभिनेता के रूप में याद किया जाता है जिन्होंने उस समय प्रचलित थियेटर शैली को समाप्त कर अभिनय को स्वाभाविकता प्रदान की और छह दशकों तक अपने बेहतरीन काम से सिनेप्रेमियों को रोमांचित किया।[1] अशोक कुमार का असली नाम कुमुद गांगुली है। इन्हें दादा मुनी के नाम से जाना जाता है। अशोक कुमार ने 300 से ज़्यादा फ़िल्मों में अभिनय किया।
जीवन परिचय
अशोक कुमार का जन्म बिहार के भागलपुर शहर के आदमपुर मोहल्ले के एक मध्यम वर्गीय बंगाली परिवार में हुआ था। अशोक कुमार सभी भाई-बहनों में बड़े थे। उनके पिता कुंजलाल गांगुली मध्य प्रदेश के खंडवा में वकील थे।गायक एवं अभिनेता किशोर कुमार एवं अभिनेता अनूप कुमार उनके छोटे भाई थे। दरअसल इन दोनों को फ़िल्मों में आने की प्रेरणा भी अशोक कुमार से ही मिली। अशोक कुमार ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा मध्यप्रदेश के खंडवा शहर में प्राप्त की थी और बाद में अशोक कुमार ने अपनी स्नातक की शिक्षा इलाहाबाद विश्वविद्यालय से पूरी की थी। अशोक कुमार ने अभिनय की प्रचलित शैलियों को दरकिनार कर दिया और अपनी स्वाभाविक शैली विकसित की थी। वह कभी भी जोखिम लेने में नहीं घबराए और पहली बार हिन्दी सिनेमा में एंटी हीरो की भूमिका की थी।[1] अशोक कुमार ने सन् 1934 में न्यू थिएटर में बतौर लेबोरेट्री असिस्टेंट के रूप में काम किया था।
अशोक, अनूप और किशोर कुमार ने 'चलती का नाम गाड़ी' में काम किया। इस कॉमेडी फ़िल्म में भी अशोक कुमार ने बड़े भाई की भूमिका निभाई थी। फ़िल्म में मधुबाला ने भी काम किया था। किशोर कुमार ने अपने कई साक्षात्कारों में यह बात स्वीकार की थी कि उन्हें न केवल अभिनय बल्कि गाने की प्रेरणा भी अशोक कुमार से मिली थी क्योंकि अशोक कुमार ने बचपन में उनके भीतर बालगीतों के जरिए गायन के संस्कार डाले थे।[2]
अभिनय की शुरुआत
फ़िल्म जगत् में दादामुनी के नाम से लोकप्रिय अशोक कुमार के अभिनय सफर की शुरुआत किसी फ़िल्मी कहानी से कम नहीं थी। 1936 में बांबे टॉकीज स्टूडियो की फ़िल्म 'जीवन नैया' के अभिनेता अचानक बीमार हो गए और कंपनी को नए कलाकार की तलाश थी। ऐसी स्थिति में स्टूडियो के मालिक हिमांशु राय की नज़र आकर्षक व्यक्तित्व के धनी लैबोरेटरी असिस्टेंट अशोक कुमार पर पड़ी और उनसे अभिनय करने का प्रस्ताव दिया था। यहीं से उनके अभिनय का सफ़र शुरू हो गया। उनकी अगली फ़िल्म 'अछूत कन्या' थी। 1937 में प्रदर्शित फ़िल्म अछूत कन्या में देविका रानी उनकी नायिका थीं। यह फ़िल्म कामयाब रही और उसने दादामुनी को बड़े सितारों की श्रेणी में स्थापित कर दिया। उस ज़माने के लिहाज़ से यह महत्त्वपूर्ण फ़िल्म थी और इसी के साथ सामाजिक समस्याओं पर आधारित फ़िल्मों की शुरुआत हुई। देविका रानी के साथ उन्होंने आगे भी कई फ़िल्में की जिनमें 'इज्जत', 'सावित्री', 'निर्मला' आदि शामिल हैं। इसके बाद उनकी जोड़ी लीला चिटनिस के साथ बनी।[1]
सफलता
एक स्टार के रूप में अशोक कुमार की छवि 1943 में आई 'क़िस्मत' फ़िल्म से बनी। पर्दे पर सिगरेट का धुँआ उड़ाते अशोक कुमार ने राम की छवि वाले नायक के उस दौर में इस फ़िल्म के जरिए एंटी हीरो के पात्र को निभाने का जोखिम उठाया। यह जोखिम उनके लिए बेहद फ़ायदेमंद साबित हुआ और इस फ़िल्म ने सफलता के कई कीर्तिमान बनाए। उसी दशक में उनकी एक और फ़िल्म महल आई, जिसमें मधुबाला थीं। रोमांचक फ़िल्म महल को भी बेहद कामयाबी मिली। बाद के दिनों में जब हिन्दी सिनेमा में दिलीप, देव और राज की तिकड़ी की लोकप्रियता चरम पर थी, उस समय भी उनका अभिनय लोगों के सर चढ़कर बोलता रहा और उनकी फ़िल्में कामयाब होती रहीं। अपने दौर की अन्य अभिनेत्रियों के साथ-साथ अशोक कुमार ने मीना कुमारी के साथ भी कई फ़िल्मों में अभिनय किया जिनमें पाकीज़ा, बहू बेगम, एक ही रास्ता, बंदिश, आरती आदि शामिल हैं।[2] अशोक कुमार के अभिनय की चर्चा उनकी आशीर्वाद फ़िल्म के बिना अधूरी ही रहेगी। इस फ़िल्म में उन्होंने एकदम नए तरह के पात्र को निभाया। इस फ़िल्म में उनका गाया गीत रेलगाड़ी रेलगाड़ी.. काफ़ी लोकप्रिय हुआ था।
अशोक कुमार का फ़िल्मी सफ़र[3]
वर्ष
फ़िल्म
नायिका
निर्देशक
1936
जीवन नैया
देविका रानी
जन्मभूमि
देविका रानी
अछूत कन्या
देविका रानी
1937
सावित्री
देविका रानी
प्रेम कहानी
माया देवी
इज़्ज़त
देविका रानी
1938
वचन
देविका रानी
निर्मला
देविका रानी
1939
कंगन
लीला चिटनिस
1940
बंधन
लीला चिटनिस
आज़ाद
लीला चिटनिस
1941
नया संसार
लीला चिटनिस
झूला
लीला चिटनिस
अंजान
देविका रानी
1943
नज़मा
वीणा
क़िस्मत
मुमताज़ शांति
अंगूठी
चन्द्र प्रभा
1944
चल चल रे नौजवान
नसीम बानो
किरन
लीला चिटनिस
1945
हुमायूँ
वीणा
बेगम
नसीम बानो
1946
शिकारी
वीणा
एट डेज़
-
1947
चन्द्रशेखर
कानन देवी
साजन
रेहाना
1948
पदमिनी
मुमताज
1949
महल
मधुबाला
1950
आधी रात
नर्गिस
संग्राम
नलिनी जयवंत
मशाल
सुमित्रा देवी
निशाना
मधुबाला
समाधि
नलिनी जयवंत
खिलाड़ी
सुरैया
1951
दीदार
नर्गिस
अफ़साना
वीणा
1952
पूनम
कामिनी कौशल
तमाशा
मीना कुमारी
सलोनी
नलिनी जयवंत
बेताब
नसीम बानो
बेवफ़ा
नर्गिस
राग रंग
गीता बाली
नौ बहार
नलिनी जयवंत
काफ़िला
नलिनी जयवंत
जलपरी
नलिनी जयवंत
1953
शोले
बीना राय
शमशीर
भानुमति
परिणीता
मीना कुमारी
1954
नगमा
नादिरा
समाज
शशिकला
लकीरें
नलिनी जयवंत
बादबान
मीना कुमारी
1955
बंदिश
मीना कुमारी
सरदार
बीना राय
1956
इंस्पेक्टर
गीता बाली
एक ही रास्ता
मीना कुमारी
शतरंज
मीना कुमारी
भाई भाई
निरुपा राय
जीवनसाथी
ऊषा किरण
1957
मिस्टर एक्स
नलिनी जयवंत
उस्ताद
अंजलि देवी
बंदी
बीना राय
तलाश
बीना राय
एक साल
मधुबाला
शेरू
नलिनी जयवंत
1958
सवेरा
मीना कुमारी
चलती का नाम गाड़ी
मधुबाला
हावड़ा ब्रिज
मधुबाला
सितारों के आगे
वैजयंती माला
रागिनी
पद्मिनी
नाइट क्लब
कामिनी कौशल
कारीगर
निरुपा राय
लाइटहाउस
नूतन
फ़रिश्ता
मीना कुमारी
1959
बेदर्द ज़माना क्या जाने
निरुपा राय
कंगन
निरुपा राय
नई राहें
गीता बाली
डाका
निरुपा राय
बाप बेटे
श्यामा
धूल का फूल
माला सिन्हा
नाचघर
शोभा खोटे
1960
कल्पना
-
हौस्पिटल
-
क़ानून
-
काला आदमी
-
आँचल
-
मासूम
-
1961
डार्क स्ट्रीट
-
वारंट
-
फ्लैट नम्बर 9
-
धर्मपुत्र
-
1962
राखी
-
नकली नवाब
-
उम्मीद
-
प्राइवेट सेक्रेटरी
-
मेहेंदी लगी मेरे हाथ
-
इसी का नाम दुनिया
-
बर्मा रोड
-
आरती
-
1963
आज और कल
-
मेरे महबूब
-
मेरी सूरत तेरी आँखें
-
गुमराह
-
उस्तादों के उस्ताद
-
ये रास्ते हैं प्यार के
-
गृहस्थी
-
बन्दिनी
-
1964
दूज का चाँद
-
फूलों की सेज
-
बेनज़ीर
-
पूजा के फूल
-
चित्रलेखा
-
क्रॉसरोड्स
-
1965
चाँद और सूरज
-
बहू बेटी
-
आकाशदीप
-
नया क़ानून
-
ऊँचे लोग
-
भीगी रात
-
आधी रात के बाद
-
1966
ममता
-
दादी माँ
-
ये ज़िन्दगी कितनी हसीन है
-
तूफ़ान में प्यार कहाँ
-
अफ़साना
-
1967
मेहरबाँ
-
नई रोशनी
-
बहू बेगम
-
ज्वैलथीफ
-
1968
आबरू
-
दिल और मोहब्बत
-
साधू और शैतान
-
एक कली मुस्काई
-
आशीर्वाद
-
1969
आँसू बन गये फूल
-
दो भाई
-
पैसा या प्यार
-
इंतक़ाम
-
भाई बहन
-
प्यार का सपना
-
आराधना
-
सत्यकाम
-
1970
जवाब
-
शराफ़त
-
माँ और ममता
-
पूरब और पश्चिम
-
1971
अधिकार
-
नया ज़माना
दूर का राही
पाकीज़ा
कंगन
गंगा तेरा पानी अमृत
हम तुम और वो
गुड्डी
उम्मीद
सफ़र
1972
दिल दौलत दुनिया
राखी और हथकड़ी
रानी मेरा नाम
सा रे गा मा पा
विक्टोरिया नम्बर 203
मालिक
सज़ा
गरम मसाला
ज़मीन आसमान
अनुराग
ज़िन्दगी ज़िन्दगी
1973
हिफ़ाज़त
टैक्सी ड्राइवर
बड़ा कबूतर
दो फूल
धुंध
1974
ख़ून की कीमत
पैसे की गुड़िया
बढ़ती का नाम दाढ़ी
उजाला ही उजाला
प्रेम नगर
दुल्हन
दो आँखें
1975
आक्रमण
एक महल हो सपनों का
चोरी मेरा काम
मिली
छोटी सी बात
उलझन
दफ़ा 302
1976
भँवर
हरफन मौला
एक से बढ़कर एक
शंकर दादा
संतान
अर्जुन पंडित
मज़दूर जिंदाबाद
आप बीती
रंगीला रतन
बारूद
1977
अनुरोध
ड्रीम गर्ल
प्रायश्चित
चला मुरारी हीरो बनने
हीरा और पत्थर
मस्तान दादा
आनन्द आश्रम
जादू टोना
सफ़ेद झूठ
1978
खट्टा मीठा
तुम्हारे लिये
अपना क़ानून
दो मुसाफ़िर
चोर के घर चोर
प्रेमी गंगाराम
अनमोल तस्वीर
फूल खिले हैं गुलशन गुलशन
दिल और दीवार
1979
बगुला भगत
जनता हवलदार
अमर दीप
1980
सौ दिन सास के
जुदाई
ख़ूबसूरत
ज्योति बने ज्वाला
आख़िरी इंसाफ
ख़्वाब
साजन मेरे मैं साजन की
आप के दीवाने
टक्कर
नज़राना प्यार का
1981
जय यात्रा
महफ़िल
मान गये उस्ताद
शौक़ीन
ज्योति
1982
डायल 100
चलती का नाम ज़िन्दगी
संबंध
शक्ति
मेहंदी रंग लायेगी
दर्द का रिश्ता
अनोखा बंधन
1983
महान
काया पलट
लव इन गोआ
हादसा
चोर पुलिस
प्रेम तपस्या
बेकरार
पसन्द अपनी अपनी
तकदीर
1984
दुनिया
फ़रिश्ता
राम तेरा देश
हम लोग
राजा और राणा
अकलमंद
गृहस्थी
हम रहे ना हम
1985
एक डाकू शहर में
दुर्गा
फिर आई बरसात
भागो भूत आया
फर्ज की कीमत
तवायफ़
1986
भीम भवानी
प्यार किया है प्यार करेंगे
इंतक़ाम की आग
अम्मा
दहलीज़
कत्ल
असली नकली
शत्रु
1987
आवाम
हिफ़ाज़त
वो दिन आयेगा
वतन के रखवाले
प्यार की जीत
मिस्टर इण्डिया
जवाब हम देंगे
सुपरमैन
1988
फ़ैसला
भारत एक खोज
इन्तकाम
1989
ममता की छाँव में
क्लर्क
अनजाने रिश्ते
दाना पानी
सच्चाई की ताकत
मज़बूर
1991
मौत की सज़ा
आधि मिमांसा
1992
हमला
1993
आँसू बने अंगारे
1994
यूं ही कभी
1995
जमला हो जमला
मेरा दामाद
1996
रिटर्न ऑफ ज्वैलथीफ
दुश्मन दुनिया का
बेकाबू
1997
आँखों में तुम हो
चरित्र अभिनेता
अशोक कुमार ने बाद के जीवन में चरित्र अभिनेता की भूमिकाएँ निभानी शुरू कर दी थीं। इन भूमिकाओं में भी अशोक कुमार ने जीवंत अभिनय किया। अशोक कुमार गंभीर ही नहीं हास्य अभिनय में भी महारथ रखते थे। विक्टोरिया नंबर 203 फ़िल्म हो या शौक़ीन, अशोक कुमार ने हर किरदार में कुछ नया पैदा करने का प्रयास किया। उम्र बढ़ने के साथ ही उन्होंने सहायक और चरित्र अभिनेता का किरदार निभाना शुरू कर दिया लेकिन उनके अभिनय की ताजगी क़ायम रही। ऐसी फ़िल्मों में क़ानून, चलती का नाम गाड़ी, छोटी सी बात, मिली, ख़ूबसूरत, गुमराह, एक ही रास्ता, बंदिनी, ममता आदि शामिल हैं।[1] उन्होंने विलेन की भी भूमिका की। देव आनंद की ज्वैल थीफ़ में उन्होंने विलेन की भूमिका की थी।
फ़िल्म निर्माण
पचास के दशक मे बाम्बे टॉकीज से अलग होने के बाद उन्होंने अपनी खुद की कंपनी शुरू की और जूपिटर थिएटर को भी ख़रीद लिया। अशोक कुमार प्रोडक्शन के बैनर तले उन्होंने सबसे पहली फ़िल्म समाज का निर्माण किया, लेकिन यह फ़िल्म बॉक्स आफिस पर बुरी तरह असफल रही। इसके बाद उन्होनें अपने बैनर तले फ़िल्म परिणीता भी बनाई। लगभग तीन वर्ष के बाद फ़िल्म निर्माण क्षेत्र में घाटा होने के कारण उन्होंने अपनी प्रोडक्शन कंपनी बंद कर दी। 1953 में प्रदर्शित फ़िल्म 'परिणीता' के निर्माण के दौरान फ़िल्म के निर्देशक बिमल राय के साथ उनकी अनबन हो गई थी। जिसके कारण उन्होंने बिमल राय के साथ काम करना बंद कर दिया, लेकिन अभिनेत्री नूतन के कहने पर अशोक कुमार ने एक बार फिर से बिमल रॉय के साथ 1963 में प्रदर्शित फ़िल्म बंदिनी में काम किया। यह फ़िल्म हिन्दी फ़िल्म के इतिहास में आज भी क्लासिक फ़िल्मों में शुमार की जाती है। 1967 में प्रदर्शित फ़िल्म 'ज्वैलथीफ़' में अशोक कुमार के अभिनय का नया रूप दर्शको को देखने को मिला। इस फ़िल्म में वह अपने सिने कैरियर मे पहली बार खलनायक की भूमिका में दिखाई दिए। इस फ़िल्म के जरिए भी उन्होंने दर्शकों का भरपूर मनोरंजन किया। अभिनय में आई एकरुपता से बचने और स्वंय को चरित्र अभिनेता के रूप मे भी स्थापित करने के लिए अशोक कुमार ने खुद को विभिन्न भूमिकाओं में पेश किया। इनमें 1968 में प्रदर्शित फ़िल्म 'आर्शीवाद' ख़ास तौर पर उल्लेखनीय है। फ़िल्म में बेमिसाल अभिनय के लिए उनको सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इस फ़िल्म में उनका गाया गाना रेल गाड़ी-रेल गाड़ी बच्चों के बीच काफ़ी लोकप्रिय हुआ।
अन्य विशेषताएँ
'दादामुनी' मतलब बड़े भाई के नाम से मशहूर अशोक कुमार एक बेहतरीन चित्रकार, शतरंज खिलाड़ी, एक होम्योपैथ व कई भाषाओं के ज्ञाता भी थे। उन्होंने कई फ़िल्मों में स्वयं गाने भी गाए। फ़िल्म ही नहीं अशोक कुमार ने टीवी में भी काम किया। भारत के पहले सोप ओपेरा 'हम लोग' में उन्होंने सूत्रधार की भूमिका निभाई। सूत्रधार के रूप में अशोक कुमार 'हम लोग' के एक अभिन्न अंग बन गए। दर्शक आख़िर में की जाने वाली उनकी टिप्पणी का इंतज़ार करते थे क्योंकि वह टिप्पणी को हर बार अलग तरीके से दोहराते थे। इसके अलावा उन्होंने आख़िरी मुग़ल बादशाह बहादुर शाह जफ़र के जीवन पर आधारित धारावाहिक में भी बेहतरीन भूमिका निभाई।[2]
पुरस्कार
अशोक कुमार को फ़िल्मी सफर में कई पुरस्कारों से नवाज़ा गया और क़रीब छह दशक तक बेमिसाल अभिनय से दर्शकों को रोमांचित किया।
सन
पुरस्कार
1959
संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
1962
राखी फ़िल्म के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार मिला था।
1967
अफ़साना फ़िल्म के लिए सहायक अभिनेता का फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार मिला था।
1969
आशीर्वाद फ़िल्म के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार मिला था।
1969
आशीर्वाद फ़िल्म के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के लिए राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार मिला था।
1988
दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
1994
स्टार स्क्रीन लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
1995
फ़िल्मफ़ेयर लाइफटाइम एचीवमेंट अवार्ड से सम्मानित किया गया।
1999
पद्म भूषण से सम्मानित किया गया।
2001
उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा अवध सम्मान दिया गया।
2007
स्टार स्क्रीन की तरफ़ से "विशेष पुरस्कार" पुरस्कार से सम्मान दिया गया।
मृत्यु
क़रीब छह दशक तक बेमिसाल अभिनय से दर्शकों को रोमांचित करने वाले दादामुनी अशोक कुमार 10 दिसंबर2001 को इस दुनिया को अलविदा कह गए। वह आज भले ही हमारे बीच नहीं हो लेकिन वह क़रीब 275 फ़िल्मों की ऐसी विरासत छोड़ गए हैं जो हमेशा-हमेशा के लिए दर्शकों को सोचने, गुदगुदाने और रोमांचित करने के लिए पर्याप्त हैं।[1]
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