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Friday, 13 October 2017

अशोक कुमार (जन्म: 13 अक्तूबर, 1911 - मृत्यु: 10 दिसंबर, 2000) 

अशोक कुमार



पूरा नाम

कुमुद कुमार गांगुली

प्रसिद्ध नाम

अशोक कुमार

अन्य नाम

दादा मुनी

जन्म

13 अक्तूबर1911

जन्म भूमि

भागलपुरबिहार

मृत्यु

10 दिसंबर2001

मृत्यु स्थान

मुम्बई

अभिभावक

कुंजलाल गांगुली

कर्म भूमि

मुम्बई

कर्म-क्षेत्र

फ़िल्म संगीत, अभिनय, निर्देशक, निर्माता, गीतकार

मुख्य फ़िल्में

अछूत कन्या, इज्जत, सावित्री, निर्मला

शिक्षा

स्नातक

विद्यालय

इलाहाबाद विश्वविद्यालय

पुरस्कार-उपाधि

दादा साहब फाल्के पुरस्कारपद्म भूषणसंगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार

नागरिकता

भारतीय

अशोक कुमार (अंग्रेज़ी: Ashok Kumar, जन्म: 13 अक्तूबर1911 - मृत्यु: 10 दिसंबर2000हिन्दी फ़िल्मों के प्रसिद्ध अभिनेता, निर्माता-निर्देशक थे। अशोक कुमार को सन् 1999 में भारत सरकार ने कला के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया था। हिन्दी सिनेमा के युगपुरुष कुमुद कुमार गांगुली उर्फ अशोक कुमार को ऐसे अभिनेता के रूप में याद किया जाता है जिन्होंने उस समय प्रचलित थियेटर शैली को समाप्त कर अभिनय को स्वाभाविकता प्रदान की और छह दशकों तक अपने बेहतरीन काम से सिनेप्रेमियों को रोमांचित किया।[1] अशोक कुमार का असली नाम कुमुद गांगुली है। इन्हें दादा मुनी के नाम से जाना जाता है। अशोक कुमार ने 300 से ज़्यादा फ़िल्मों में अभिनय किया।

जीवन परिचय

अशोक कुमार का जन्म बिहार के भागलपुर शहर के आदमपुर मोहल्ले के एक मध्यम वर्गीय बंगाली परिवार में हुआ था। अशोक कुमार सभी भाई-बहनों में बड़े थे। उनके पिता कुंजलाल गांगुली मध्य प्रदेश के खंडवा में वकील थे।गायक एवं अभिनेता किशोर कुमार एवं अभिनेता अनूप कुमार उनके छोटे भाई थे। दरअसल इन दोनों को फ़िल्मों में आने की प्रेरणा भी अशोक कुमार से ही मिली। अशोक कुमार ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा मध्यप्रदेश के खंडवा शहर में प्राप्त की थी और बाद में अशोक कुमार ने अपनी स्नातक की शिक्षा इलाहाबाद विश्वविद्यालय से पूरी की थी। अशोक कुमार ने अभिनय की प्रचलित शैलियों को दरकिनार कर दिया और अपनी स्वाभाविक शैली विकसित की थी। वह कभी भी जोखिम लेने में नहीं घबराए और पहली बार हिन्दी सिनेमा में एंटी हीरो की भूमिका की थी।[1] अशोक कुमार ने सन् 1934 में न्यू थिएटर में बतौर लेबोरेट्री असिस्टेंट के रूप में काम किया था।

अशोक, अनूप और किशोर कुमार ने 'चलती का नाम गाड़ी' में काम किया। इस कॉमेडी फ़िल्म में भी अशोक कुमार ने बड़े भाई की भूमिका निभाई थी। फ़िल्म में मधुबाला ने भी काम किया था। किशोर कुमार ने अपने कई साक्षात्कारों में यह बात स्वीकार की थी कि उन्हें न केवल अभिनय बल्कि गाने की प्रेरणा भी अशोक कुमार से मिली थी क्योंकि अशोक कुमार ने बचपन में उनके भीतर बालगीतों के जरिए गायन के संस्कार डाले थे।[2]

अभिनय की शुरुआत

फ़िल्म जगत् में दादामुनी के नाम से लोकप्रिय अशोक कुमार के अभिनय सफर की शुरुआत किसी फ़िल्मी कहानी से कम नहीं थी। 1936 में बांबे टॉकीज स्टूडियो की फ़िल्म 'जीवन नैया' के अभिनेता अचानक बीमार हो गए और कंपनी को नए कलाकार की तलाश थी। ऐसी स्थिति में स्टूडियो के मालिक हिमांशु राय की नज़र आकर्षक व्यक्तित्व के धनी लैबोरेटरी असिस्टेंट अशोक कुमार पर पड़ी और उनसे अभिनय करने का प्रस्ताव दिया था। यहीं से उनके अभिनय का सफ़र शुरू हो गया। उनकी अगली फ़िल्म 'अछूत कन्या' थी। 1937 में प्रदर्शित फ़िल्म अछूत कन्या में देविका रानी उनकी नायिका थीं। यह फ़िल्म कामयाब रही और उसने दादामुनी को बड़े सितारों की श्रेणी में स्थापित कर दिया। उस ज़माने के लिहाज़ से यह महत्त्वपूर्ण फ़िल्म थी और इसी के साथ सामाजिक समस्याओं पर आधारित फ़िल्मों की शुरुआत हुई। देविका रानी के साथ उन्होंने आगे भी कई फ़िल्में की जिनमें 'इज्जत', 'सावित्री', 'निर्मला' आदि शामिल हैं। इसके बाद उनकी जोड़ी लीला चिटनिस के साथ बनी।[1]

सफलता

एक स्टार के रूप में अशोक कुमार की छवि 1943 में आई 'क़िस्मत' फ़िल्म से बनी। पर्दे पर सिगरेट का धुँआ उड़ाते अशोक कुमार ने राम की छवि वाले नायक के उस दौर में इस फ़िल्म के जरिए एंटी हीरो के पात्र को निभाने का जोखिम उठाया। यह जोखिम उनके लिए बेहद फ़ायदेमंद साबित हुआ और इस फ़िल्म ने सफलता के कई कीर्तिमान बनाए। उसी दशक में उनकी एक और फ़िल्म महल आई, जिसमें मधुबाला थीं। रोमांचक फ़िल्म महल को भी बेहद कामयाबी मिली। बाद के दिनों में जब हिन्दी सिनेमा में दिलीप, देव और राज की तिकड़ी की लोकप्रियता चरम पर थी, उस समय भी उनका अभिनय लोगों के सर चढ़कर बोलता रहा और उनकी फ़िल्में कामयाब होती रहीं। अपने दौर की अन्य अभिनेत्रियों के साथ-साथ अशोक कुमार ने मीना कुमारी के साथ भी कई फ़िल्मों में अभिनय किया जिनमें पाकीज़ा, बहू बेगम, एक ही रास्ता, बंदिश, आरती आदि शामिल हैं।[2] अशोक कुमार के अभिनय की चर्चा उनकी आशीर्वाद फ़िल्म के बिना अधूरी ही रहेगी। इस फ़िल्म में उन्होंने एकदम नए तरह के पात्र को निभाया। इस फ़िल्म में उनका गाया गीत रेलगाड़ी रेलगाड़ी.. काफ़ी लोकप्रिय हुआ था।

अशोक कुमार का फ़िल्मी सफ़र[3]

वर्ष

फ़िल्म

नायिका

निर्देशक

1936

जीवन नैया

देविका रानी

जन्मभूमि

देविका रानी

अछूत कन्या

देविका रानी

1937

सावित्री

देविका रानी

प्रेम कहानी

माया देवी

इज़्ज़त

देविका रानी

1938

वचन

देविका रानी

निर्मला

देविका रानी

1939

कंगन

लीला चिटनिस

1940

बंधन

लीला चिटनिस

आज़ाद

लीला चिटनिस

1941

नया संसार

लीला चिटनिस

झूला

लीला चिटनिस

अंजान

देविका रानी

1943

नज़मा

वीणा

क़िस्मत

मुमताज़ शांति

अंगूठी

चन्द्र प्रभा

1944

चल चल रे नौजवान

नसीम बानो

किरन

लीला चिटनिस

1945

हुमायूँ

वीणा

बेगम

नसीम बानो

1946

शिकारी

वीणा

एट डेज़

-

1947

चन्द्रशेखर

कानन देवी

साजन

रेहाना

1948

पदमिनी

मुमताज

1949

महल

मधुबाला

1950

आधी रात

नर्गिस

संग्राम

नलिनी जयवंत

मशाल

सुमित्रा देवी

निशाना

मधुबाला

समाधि

नलिनी जयवंत

खिलाड़ी

सुरैया

1951

दीदार

नर्गिस

अफ़साना

वीणा

1952

पूनम

कामिनी कौशल

तमाशा

मीना कुमारी

सलोनी

नलिनी जयवंत

बेताब

नसीम बानो

बेवफ़ा

नर्गिस

राग रंग

गीता बाली

नौ बहार

नलिनी जयवंत

काफ़िला

नलिनी जयवंत

जलपरी

नलिनी जयवंत

1953

शोले

बीना राय

शमशीर

भानुमति

परिणीता

मीना कुमारी

1954

नगमा

नादिरा

समाज

शशिकला

लकीरें

नलिनी जयवंत

बादबान

मीना कुमारी

1955

बंदिश

मीना कुमारी

सरदार

बीना राय

1956

इंस्पेक्टर

गीता बाली

एक ही रास्ता

मीना कुमारी

शतरंज

मीना कुमारी

भाई भाई

निरुपा राय

जीवनसाथी

ऊषा किरण

1957

मिस्टर एक्स

नलिनी जयवंत

उस्ताद

अंजलि देवी

बंदी

बीना राय

तलाश

बीना राय

एक साल

मधुबाला

शेरू

नलिनी जयवंत

1958

सवेरा

मीना कुमारी

चलती का नाम गाड़ी

मधुबाला

हावड़ा ब्रिज

मधुबाला

सितारों के आगे

वैजयंती माला

रागिनी

पद्मिनी

नाइट क्लब

कामिनी कौशल

कारीगर

निरुपा राय

लाइटहाउस

नूतन

फ़रिश्ता

मीना कुमारी

1959

बेदर्द ज़माना क्या जाने

निरुपा राय

कंगन

निरुपा राय

नई राहें

गीता बाली

डाका

निरुपा राय

बाप बेटे

श्यामा

धूल का फूल

माला सिन्हा

नाचघर

शोभा खोटे

1960

कल्पना

-

हौस्पिटल

-

क़ानून

-

काला आदमी

-

आँचल

-

मासूम

-

1961

डार्क स्ट्रीट

-

वारंट

-

फ्लैट नम्बर 9

-

धर्मपुत्र

-

1962

राखी

-

नकली नवाब

-

उम्मीद

-

प्राइवेट सेक्रेटरी

-

मेहेंदी लगी मेरे हाथ

-

इसी का नाम दुनिया

-

बर्मा रोड

-

आरती

-

1963

आज और कल

-

मेरे महबूब

-

मेरी सूरत तेरी आँखें

-

गुमराह

-

उस्तादों के उस्ताद

-

ये रास्ते हैं प्यार के

-

गृहस्थी

-

बन्दिनी

-

1964

दूज का चाँद

-

फूलों की सेज

-

बेनज़ीर

-

पूजा के फूल

-

चित्रलेखा

-

क्रॉसरोड्स

-

1965

चाँद और सूरज

-

बहू बेटी

-

आकाशदीप

-

नया क़ानून

-

ऊँचे लोग

-

भीगी रात

-

आधी रात के बाद

-

1966

ममता

-

दादी माँ

-

ये ज़िन्दगी कितनी हसीन है

-

तूफ़ान में प्यार कहाँ

-

अफ़साना

-

1967

मेहरबाँ

-

नई रोशनी

-

बहू बेगम

-

ज्वैलथीफ

-

1968

आबरू

-

दिल और मोहब्बत

-

साधू और शैतान

-

एक कली मुस्काई

-

आशीर्वाद

-

1969

आँसू बन गये फूल

-

दो भाई

-

पैसा या प्यार

-

इंतक़ाम

-

भाई बहन

-

प्यार का सपना

-

आराधना

-

सत्यकाम

-

1970

जवाब

-

शराफ़त

-

माँ और ममता

-

पूरब और पश्चिम

-

1971

अधिकार

-

नया ज़माना

दूर का राही

पाकीज़ा

कंगन

गंगा तेरा पानी अमृत

हम तुम और वो

गुड्डी

उम्मीद

सफ़र

1972

दिल दौलत दुनिया

राखी और हथकड़ी

रानी मेरा नाम

सा रे गा मा पा

विक्टोरिया नम्बर 203

मालिक

सज़ा

गरम मसाला

ज़मीन आसमान

अनुराग

ज़िन्दगी ज़िन्दगी

1973

हिफ़ाज़त

टैक्सी ड्राइवर

बड़ा कबूतर

दो फूल

धुंध

1974

ख़ून की कीमत

पैसे की गुड़िया

बढ़ती का नाम दाढ़ी

उजाला ही उजाला

प्रेम नगर

दुल्हन

दो आँखें

1975

आक्रमण

एक महल हो सपनों का

चोरी मेरा काम

मिली

छोटी सी बात

उलझन

दफ़ा 302

1976

भँवर

हरफन मौला

एक से बढ़कर एक

शंकर दादा

संतान

अर्जुन पंडित

मज़दूर जिंदाबाद

आप बीती

रंगीला रतन

बारूद

1977

अनुरोध

ड्रीम गर्ल

प्रायश्चित

चला मुरारी हीरो बनने

हीरा और पत्थर

मस्तान दादा

आनन्द आश्रम

जादू टोना

सफ़ेद झूठ

1978

खट्टा मीठा

तुम्हारे लिये

अपना क़ानून

दो मुसाफ़िर

चोर के घर चोर

प्रेमी गंगाराम

अनमोल तस्वीर

फूल खिले हैं गुलशन गुलशन

दिल और दीवार

1979

बगुला भगत

जनता हवलदार

अमर दीप

1980

सौ दिन सास के

जुदाई

ख़ूबसूरत

ज्योति बने ज्वाला

आख़िरी इंसाफ

ख़्वाब

साजन मेरे मैं साजन की

आप के दीवाने

टक्कर

नज़राना प्यार का

1981

जय यात्रा

महफ़िल

मान गये उस्ताद

शौक़ीन

ज्योति

1982

डायल 100

चलती का नाम ज़िन्दगी

संबंध

शक्ति

मेहंदी रंग लायेगी

दर्द का रिश्ता

अनोखा बंधन

1983

महान

काया पलट

लव इन गोआ

हादसा

चोर पुलिस

प्रेम तपस्या

बेकरार

पसन्द अपनी अपनी

तकदीर

1984

दुनिया

फ़रिश्ता

राम तेरा देश

हम लोग

राजा और राणा

अकलमंद

गृहस्थी

हम रहे ना हम

1985

एक डाकू शहर में

दुर्गा

फिर आई बरसात

भागो भूत आया

फर्ज की कीमत

तवायफ़

1986

भीम भवानी

प्यार किया है प्यार करेंगे

इंतक़ाम की आग

अम्मा

दहलीज़

कत्ल

असली नकली

शत्रु

1987

आवाम

हिफ़ाज़त

वो दिन आयेगा

वतन के रखवाले

प्यार की जीत

मिस्टर इण्डिया

जवाब हम देंगे

सुपरमैन

1988

फ़ैसला

भारत एक खोज

इन्तकाम

1989

ममता की छाँव में

क्लर्क

अनजाने रिश्ते

दाना पानी

सच्चाई की ताकत

मज़बूर

1991

मौत की सज़ा

आधि मिमांसा

1992

हमला

1993

आँसू बने अंगारे

1994

यूं ही कभी

1995

जमला हो जमला

मेरा दामाद

1996

रिटर्न ऑफ ज्वैलथीफ

दुश्मन दुनिया का

बेकाबू

1997

आँखों में तुम हो

चरित्र अभिनेता

अशोक कुमार ने बाद के जीवन में चरित्र अभिनेता की भूमिकाएँ निभानी शुरू कर दी थीं। इन भूमिकाओं में भी अशोक कुमार ने जीवंत अभिनय किया। अशोक कुमार गंभीर ही नहीं हास्य अभिनय में भी महारथ रखते थे। विक्टोरिया नंबर 203 फ़िल्म हो या शौक़ीन, अशोक कुमार ने हर किरदार में कुछ नया पैदा करने का प्रयास किया। उम्र बढ़ने के साथ ही उन्होंने सहायक और चरित्र अभिनेता का किरदार निभाना शुरू कर दिया लेकिन उनके अभिनय की ताजगी क़ायम रही। ऐसी फ़िल्मों में क़ानून, चलती का नाम गाड़ी, छोटी सी बात, मिली, ख़ूबसूरत, गुमराह, एक ही रास्ता, बंदिनी, ममता आदि शामिल हैं।[1] उन्होंने विलेन की भी भूमिका की। देव आनंद की ज्वैल थीफ़ में उन्होंने विलेन की भूमिका की थी।

फ़िल्म निर्माण

पचास के दशक मे बाम्बे टॉकीज से अलग होने के बाद उन्होंने अपनी खुद की कंपनी शुरू की और जूपिटर थिएटर को भी ख़रीद लिया। अशोक कुमार प्रोडक्शन के बैनर तले उन्होंने सबसे पहली फ़िल्म समाज का निर्माण किया, लेकिन यह फ़िल्म बॉक्स आफिस पर बुरी तरह असफल रही। इसके बाद उन्होनें अपने बैनर तले फ़िल्म परिणीता भी बनाई। लगभग तीन वर्ष के बाद फ़िल्म निर्माण क्षेत्र में घाटा होने के कारण उन्होंने अपनी प्रोडक्शन कंपनी बंद कर दी। 1953 में प्रदर्शित फ़िल्म 'परिणीता' के निर्माण के दौरान फ़िल्म के निर्देशक बिमल राय के साथ उनकी अनबन हो गई थी। जिसके कारण उन्होंने बिमल राय के साथ काम करना बंद कर दिया, लेकिन अभिनेत्री नूतन के कहने पर अशोक कुमार ने एक बार फिर से बिमल रॉय के साथ 1963 में प्रदर्शित फ़िल्म बंदिनी में काम किया। यह फ़िल्म हिन्दी फ़िल्म के इतिहास में आज भी क्लासिक फ़िल्मों में शुमार की जाती है। 1967 में प्रदर्शित फ़िल्म 'ज्वैलथीफ़' में अशोक कुमार के अभिनय का नया रूप दर्शको को देखने को मिला। इस फ़िल्म में वह अपने सिने कैरियर मे पहली बार खलनायक की भूमिका में दिखाई दिए। इस फ़िल्म के जरिए भी उन्होंने दर्शकों का भरपूर मनोरंजन किया। अभिनय में आई एकरुपता से बचने और स्वंय को चरित्र अभिनेता के रूप मे भी स्थापित करने के लिए अशोक कुमार ने खुद को विभिन्न भूमिकाओं में पेश किया। इनमें 1968 में प्रदर्शित फ़िल्म 'आर्शीवाद' ख़ास तौर पर उल्लेखनीय है। फ़िल्म में बेमिसाल अभिनय के लिए उनको सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इस फ़िल्म में उनका गाया गाना रेल गाड़ी-रेल गाड़ी बच्चों के बीच काफ़ी लोकप्रिय हुआ।

अन्य विशेषताएँ

'दादामुनी' मतलब बड़े भाई के नाम से मशहूर अशोक कुमार एक बेहतरीन चित्रकार, शतरंज खिलाड़ी, एक होम्योपैथ व कई भाषाओं के ज्ञाता भी थे। उन्होंने कई फ़िल्मों में स्वयं गाने भी गाए। फ़िल्म ही नहीं अशोक कुमार ने टीवी में भी काम किया। भारत के पहले सोप ओपेरा 'हम लोग' में उन्होंने सूत्रधार की भूमिका निभाई। सूत्रधार के रूप में अशोक कुमार 'हम लोग' के एक अभिन्न अंग बन गए। दर्शक आख़िर में की जाने वाली उनकी टिप्पणी का इंतज़ार करते थे क्योंकि वह टिप्पणी को हर बार अलग तरीके से दोहराते थे। इसके अलावा उन्होंने आख़िरी मुग़ल बादशाह बहादुर शाह जफ़र के जीवन पर आधारित धारावाहिक में भी बेहतरीन भूमिका निभाई।[2]

पुरस्कार

अशोक कुमार को फ़िल्मी सफर में कई पुरस्कारों से नवाज़ा गया और क़रीब छह दशक तक बेमिसाल अभिनय से दर्शकों को रोमांचित किया।

सन

पुरस्कार

1959

संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

1962

राखी फ़िल्म के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार मिला था।

1967

अफ़साना फ़िल्म के लिए सहायक अभिनेता का फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार मिला था।

1969

आशीर्वाद फ़िल्म के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार मिला था।

1969

आशीर्वाद फ़िल्म के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के लिए राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार मिला था।

1988

दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

1994

स्टार स्क्रीन लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

1995

फ़िल्मफ़ेयर लाइफटाइम एचीवमेंट अवार्ड से सम्मानित किया गया।

1999

पद्म भूषण से सम्मानित किया गया।

2001

उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा अवध सम्मान दिया गया।

2007

स्टार स्क्रीन की तरफ़ से "विशेष पुरस्कार" पुरस्कार से सम्मान दिया गया।

मृत्यु

क़रीब छह दशक तक बेमिसाल अभिनय से दर्शकों को रोमांचित करने वाले दादामुनी अशोक कुमार 10 दिसंबर2001 को इस दुनिया को अलविदा कह गए। वह आज भले ही हमारे बीच नहीं हो लेकिन वह क़रीब 275 फ़िल्मों की ऐसी विरासत छोड़ गए हैं जो हमेशा-हमेशा के लिए दर्शकों को सोचने, गुदगुदाने और रोमांचित करने के लिए पर्याप्त हैं।[1]

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