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Tuesday, 7 November 2017

आदिलशाही वंश

आदिलशाही वंश  

आदिलशाही राजवंश की स्थापना बीजापुर में 1489 ई. में यूसुफ़ आदिल ख़ाँ ने की थी। वह जार्जिया निवासी ग़ुलाम था जो अपनी योग्यता के कारण बहमनी सुल्तान महमूद (1482-1518 ई.) के यहाँ ऊँचे पद पर पहुँचा था और उसको बीजापुर का सूबेदार बनाया गया था। बाद में उसने बीजापुर को राजधानी बनाकर स्वतंत्र राज्य स्थापित किया। उसके राजवंश ने बीजापुर में 1489 से 1685 ई. तक राज्य किया। अन्तिम आदिलशाही सुल्तान सिकंदर को औरंगज़ेब ने पराजित करके गिरफ्तार कर लिया।

इतिहास

1686 में औरंगज़ेब द्वारा बीजापुर को परास्त किए जाने से पहले इस वंश ने 17वीं शताब्दी में मुग़लों के दक्षिण की ओर बढ़ने का जमकर विरोध किया। इस सल्तनत का नाम युसुफ़ आदिल शाह के नाम पर पड़ा, जिन्हें ऑटोमन सुल्तान मुराद द्वितीय का बेटा कहा जाता है। उन्होंने वहां शिया संप्रदाय का प्रचलन शुरू किया, मगर वह दूसरे मतों के प्रति सहिष्णु थे। उनके शासन के अंतिम दिनों में गोवा पुर्तग़ालियों द्वारा जीत (1510) लिया गया। लगातार चलने वाली लड़ाइयों के बाद बीजापुर और अन्य तीन दक्कनी मुस्लिम राज्यों, गोलकुंडाबीदर और अहमदनगर, ने मिलकर 1565 में तालिकोटा की लड़ाई में विजयनगर के हिन्दू साम्राज्य को हरा दिया।

कुशल शासक

इब्राहीम आदिल शाह द्वितीय (1579-1626) का दौर इस राजवंश का महानतम काल था, जिन्होंने अपने राज्य की सीमाओं का दक्षिण में मैसूर तक विस्तार किया। आदिल शाह एक कुशल प्रशासक और कलाओं के उदार संरक्षक थे। वह इस्लाम के सुन्नी मत की ओर वापस लौटे, मगर ईसाई धर्म सहित दूसरे धर्मों के प्रति सहिष्णु बने रहे। बाद में आदिलशाही वंश की बढ़ती कमज़ोरियों के कारण मुग़लों को उनका राज्य हथियाने का मौक़ा मिल गया और मराठा प्रमुख शिवाजी ने अपने सफल विद्रोह में बीजापुर के सेनापति अफ़ज़ल ख़ाँ को मारकर सेना को छिन्न-भिन्न कर दिया।

शासकों के नाम

इस राजवंश में—

यूसुफ़ आदिल ख़ाँ,

इसमाइल आदिलशाह,

मल्लू,

इब्राहीम प्रथम,

अली आदिलशाह प्रथम,

इब्राहीम द्वितीय,

मुहम्मद अली द्वितीय,

अली आदिलशाह द्वितीय और

सिकंदर नामक सुल्तान हुए।

युद्ध

इस वंश के सुल्तानों ने दक्षिण में अनेक लड़ाइयाँ लड़ीं। 1585 ई. में जब मुसलमानों ने संयुक्त रूप से विजयनगर पर हमला किया और तालीकोट का युद्ध जीत कर विजयनगर राज्य को नष्ट कर दिया तो उसमें आदिलशाही सुल्तान भी शामिल थे।

भव्य इमारतें

बीजापुर शहर के चारों ओर शहरपनाह, बीजापुर की ख़ास मस्जिद, गगन महल, इब्राहीम द्वितीय (1580-1626 ई.) का मक़बरा और उसके उत्तराधिकारी मुहम्मद (1626-56 ई.) का मक़बरा भव्य इमारतें हैं। जिन्हें कुशल कारीगरों से बनवाया गया था। कुछ सुल्तान, ख़ासतौर से छठा सुल्तान इब्राहीम द्वितीय योग्य और उदार शासक था। वह साहित्य प्रेमी था। प्रसिद्ध इतिहासकार मुहम्मद कासिम उर्फ फ़रिश्ता ने आदिलशाही संरक्षण में रहकर अपना प्रसिद्ध इतिहास ग्रंथ 'तारीख़-ए-फ़रिश्ता' लिखा था।

यूसुफ़ आदिल ख़ाँ  

यूसुफ़ आदिल ख़ाँ बीजापुर के आदिलशाही वंश का प्रवर्तक था। वह तुर्की के सुल्तान मुराद द्वितीय का पुत्र माना जाता है। उसे सुरक्षा की दृष्टि से गुप्त रूप से फ़ारस लाया गया और वहाँ दास के रूप में बहमनी सुल्तान मुहम्मद शाह तृतीय के मन्त्री मुहम्मद गवाँ के हाथ बेच दिया गया। अपनी योग्यता के बल पर ही वह बहमनी साम्राज्य का हाकिम नियुक्त हुआ।

उच्च पद की प्राप्ति

यूसुफ़ आदिल ख़ाँ बहुत परिश्रमी, वीर और कार्यकुशल था। अपनी योग्यता के आधार पर ही मार्ग प्रशस्त करके हुए वह उच्च पद पर पहुँच गया और बहमनी सुल्तान के द्वारा बीजापुर का हाकिम बना दिया गया। यहाँ वह 1489-1490 ई. में स्वतन्त्र शासक बन बैठा और अपनी मृत्यु पर्यन्त वहाँ का शासन किया, जिससे बीजापुर के 'आदिलशाही वंश' की नींव पड़ी। इस वंश ने 1686 ई. तक शासन किया।

महत्त्वपूर्ण तथ्य

अन्तिम सुल्तान सिकंदर आदिलशाह को सम्राट औरंगज़ेब ने परास्त करके बंदी बनाया और अपदस्थ कर दिया। यूसुफ़ आदिल वीर एवं सहिष्णु शासक था। उसने हिन्दुओं को ऊँचे पदों पर नियुक्त किया था। वह शिया मत को मानने वाला था। उसने एक मराठा स्त्री से विवाह किया, जो मराठा सरदार मुकुन्दराव की बहन थी। विवाह के बाद उसका नाम बूवूजी ख़ानम पड़ा। वह उसके पुत्र और उत्तराधिकारी इसमाइल आदिलशाह की माता बनी। यूसुफ़ आदिल ख़ाँ गोवा बन्दरगाह के महत्त्व को भली प्रकार समझता था और वहाँ अक्सर निवास करता था। 1510 ई. में पुर्तग़ाली एडमिरल एल्बुकर्क ने सुल्तान के स्थानीय अधिकारियों की लापरवाही से लाभ उठाकर बन्दरगाह पर क़ब्ज़ा कर लिया, परन्तु यूसुफ़ आदिलशाह ने छ: मास बाद ही उसे पुन: हस्तगत कर लिया।

मृत्यु

यूसुफ़ आदिल ख़ाँ विद्वानों और गुणीजनों का संरक्षक था। 74 वर्ष की अवस्था में उसकी मृत्यु 1510 ई. में हुई।

इसमाइल आदिलशाह  

इसमाइल आदिलशाह बीजापुर के आदिलशाही वंश का दूसरा सुल्तान था। उसने 1510 ई. से 1534 ई. तक शासन किया था।

जिस समय इसमाइल आदिलशाह गद्दी पर बैठा, तब वह नाबालिग था।

बालिग होने पर उसने कई लड़ाइयाँ जीतीं और विजयनगर साम्राज्य से कृष्णा और तुंगभद्रा के बीच रायचूर का दोआब छीन लिया।

फ़ारस के शाह तहमस्प ने उसके दरबार में अपना दूत भेजा था। इससे वह इतना खुश हुआ कि उसका झुकाव 'शिया मत' की ओर हो गया, क्योंकि फ़ारस का शाह भी शिया था।
मल्ल आदिलशाह  



यह लेख की आधार अवस्था ही है, आप इसको तैयार करने में सहायता कर सकते हैं।

मल्ल बीजापुर का सुल्तान था। यह आदिलशाही वंश का तीसरा सुल्तान था। उसने 1534 ई. में केवल छ: महीने शासन किया। वह बड़ा पापी था, इसीलिए उसे अंधा बनाकर गद्दी से उतार दिया गया।

इब्राहीम आदिलशाह प्रथम  

इब्राहीम आदिलशाह प्रथम बीजापुर के आदिलशाही वंश का चौथा सुल्तान (1534-57 ई.) था। इस वंश के प्रथम सुल्तान ने शिया धर्म अंगीकार कर लिया था। इब्राहीम प्रथम ने शिया धर्म अस्वीकार कर दिया। वह फ़ारस से आये अमीरों के स्थान पर दक्कनी अमीरों को पसंद करता था। इसका वज़ीर असद ख़ाँ अत्यन्त योग्य था। उसने विजयनगर की एक सप्ताह की राजकीय यात्रा की और बहुत से उपहारों के साथ वापस लौटा। उसने अपने राज्य पर बीदरअहमदनगर तथा गोलकुण्डा सुल्तान के संयुक्त हमले को विफल कर दिया। उसके शासन काल में अनकानेक षड़यंत्र रचे गये। बुढ़ापे में वह बहुत अधिक शराब पीने लगा और उसी से उसकी मृत्यु हो गयी।


अली आदिलशाह प्रथम  

अली आदिलशाह प्रथम बीजापुर के आदिलशाही वंश के पाँचवें सुल्तान (1557-1580 ई.) थे। उसने शिया मज़हब स्वीकार किया था और सुन्नियों के प्रति असहिष्णु हो गया था। 1558 ई. में उसने विजयनगर के हिन्दू राज्य से समझौता करके अहमदनगर पर चढ़ाई की। इन दोनों राज्यों की सम्मिलित सेना ने अहमदनगर को तबाह कर दिया। अहमदनगर के मुसलमानों पर हिन्दुओं ने ज्यादतियाँ कीं उनके कारण शीघ्र ही सुल्तान अली आदिलशाह प्रथम और विजयनगर के राम राजा के सम्बन्ध बिगड़ गये। अंत में बीजापुर, अहमदनगर, बीदर और गोलकुण्डा के चारों मुसलमान सुल्तानों ने मिलकर विजयनगर को तालीकोट के युद्ध (1565 ई.) में हरा दिया। विजेता अली आदिलशाह विजयनगर को लूटने और सदा के लिए नष्ट करने में शामिल हो गया। इसके बाद सुल्तान अली आदिलशाह प्रथम ने 1570 ई. में अहमदनगर से समझौता करके भारत के पश्चिमी समुद्र तट से पुर्तग़ालियायें को निकाल बाहर करने के प्रयास में एक बड़ी सेना लेकर गोवा को घेर लिया, लेकिन पुर्तग़ालियों ने हमला विफल कर दिया। अली आदिलशाह की शादी अहमदनगर की शहजादी चाँदबीबी से हुई थी, जिसने अकबर के आक्रमण के समय अहमदनगर की रक्षा करने में बड़ी वीरता दिखाई। वह अपने पति कि मृत्यु के बाद अहमदनगर में आकर रहने लगी थी।


इब्राहीम आदिलशाह द्वितीय  



इब्राहीम आदिलशाह द्वितीय

इब्राहीम आदिलशाह द्वितीय ने 1580 से 1627 ई. तक राज्य किया था। वह आदिलशाही वंश का छठा शासक था। उसकी माँ अहमदनगर की प्रसिद्ध शाहज़ादी, चाँद बीबी थी। इब्राहीम आदिलशाह द्वितीय जिस समय गद्दी पर बैठा, उस समय वह नाबालिग था, और राज्य का प्रबंध 1584 ई. तक उसकी माँ देखती रही। 1584 ई. में चाँद बीबी अहमदनगर वापस लौट गयी।

व्यक्तित्व

1595 ई. में इब्राहीम आदिलशाह द्वितीय ने अहमदनगर के सुल्तान को पराजित कर मार डाला। परन्तु शीघ्र ही दोनों राज्यों को मुग़ल साम्राज्य द्वारा आत्मसात् कर लिये जाने की योजना का सामना करना पड़ा। इब्राहीम आदिलशाह द्वितीय, विद्वान् एवं धार्मिक रूप से सहिष्णु शासक था। उसने अपने राज्य में हिन्दू और ईसाई प्रजा को पूरी धार्मिक आज़ादी दे रखी थी। उसने प्रशासन में कई सुधार किये, भूमि का बन्दोबस्त ठीक किया, गोवा के पुर्तग़ालियों से मैत्री पूर्ण सम्बन्ध स्थापित किये, अपने राज्य का विस्तार मैसूर की सीमा तक किया।

स्थापत्य निर्माण

बीजापुर में कई सुन्दर इमारतें बनवायीं। उसके विषय में 'मीडोज टेलर' ने कहा है कि, 'इब्राहीम आदिलशाह द्वितीय, आदिलशाही वंश का सबसे बड़ा सुल्तान था, और बहुत-सी बातों में उसके संस्थापक को छोड़कर सबसे अधिक योग्य ओर लोकप्रिय भी था।' उसने 1618-1619 ई. में बीदर को बीजापुर में मिला लिया। ग़रीबों के प्रति उदार दृष्टिकोण रखने के कारण इब्राहीम आदिलशाह द्वितीय को 'अबलाबाबा' एवं विद्वानों को संरक्षण देने के कारण 'जगतगुरु' की उपाधि दी गई।

रचनाएँ

इब्राहीम आदिलशाह द्वितीय ने हिन्दी कविता की प्रसिद्ध पुस्तक 'किताब-ए-नवरस' का रचना की। इस पुस्तक में विभिन्न रागों का वर्णन किया गया है। इसमें उपलब्ध कविताएँ विभिन्न रागों में गायन हेतु रचित की गई हैं। उसके शासन काल में ही 'मुहम्मद कासिम', जो फ़रिश्ता के नाम से प्रसिद्ध था, ने 'तारीख़-ए-फ़रिश्ता' की रचना की। उसने 'नौरसपुर' नामक नगर की स्थापना की थी।

मुहम्मद आदिलशाह  

(मुहम्मद अली द्वितीय से पुनर्निर्देशित)



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मुहम्मद आदिलशाह (1626-1656) बीजापुर के आदिलशाही वंश का सातवाँ शासक था। उसका दीर्घकालीन शासन, मराठों तथा मुग़लों के निरन्तर आक्रमणों के लिए उल्लेखनीय है। उसे 1636 ई. में शाहजहाँ की अधीनता स्वीकार करनी पड़ी थी। उसका राज्य दक्षिण भारत में समुद्र तक विस्तृत था और अत्यन्त शक्तिशाली एवं वैभवपूर्ण था। गोल गुम्बद मुहम्मद आदिलशाह का मक़बरा है।

अली आदिलशाह द्वितीय  

अली आदिलशाह द्वितीय (1656-1673 ई.) बीजापुर के आदिलशाही वंश का आठवाँ सुल्तान था। जब वह तख्त पर बैठा, उस समय उसकी उम्र केवल 18 वर्ष की थी। उसकी छोटी उम्र देखकर मुग़ल बादशाह शाहजहाँ ने दक्षिण के सूबेदार अपने पुत्र औरंगज़ेब को उस पर आक्रमण करने का आदेश दिया।

मुग़लों का आक्रमण

मुग़लों ने बीजापुर पर हमला बोल दिया और युवा सुल्तान की फौंजों को कई जगह पराजित कर उसे 1656 ई. में राज्य के बीदरकल्याणी और परेन्दा आदि क्षेत्रों को सौंपकर सुलह कर लेने के लिए विवश कर दिया। मुग़लों से संधि करने के बाद सुल्तान अली आदिलशाह द्वितीय ने मराठा नेता शिवाजी का दमन करने का निश्चय किया। जिसने उसके कई क़िलों पर अधिकार कर लिया था। 1659 ई. में उसने अफ़ज़ल ख़ाँ के नेतृत्व में एक बड़ी फ़ौज शिवाजी के ख़िलाफ़ भेजी।

असफलता तथा मृत्यु

शिवाजी ने अफ़ज़ल ख़ाँ को मार डाला और बीजापुर की सेना को पराजित कर दिया। इस प्रकार अली आदिलशाह द्वितीय को शिवाजी का दमन करने और उसकी बढ़ती हुई शक्ति को रोकने में सफलता नहीं मिली और वह मुग़ल और मराठा शक्तियों के बीच में चक्की के दो पाटों की भाँति दब गया। वह किसी प्रकार 1673 ई. में अपनी मृत्यु तक अपनी गद्दी बचाये रहा।

सिकंदर आदिलशाह  



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सुल्तान सिकंदर बीजापुर के आदिलशाही वंश का अन्तिम शासक था।


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