रॉबर्ट क्लाइव
रॉबर्ट क्लाइव ब्रिटिश सेना में एक सैनिक के पद पर तैनात हुआ था, किन्तु अपनी सूझबूझ, समझदारी और बुद्धि से उसने एक बहुत ऊँचा पद प्राप्त कर लिया था। रॉबर्ट क्लाइव का जन्म 29 सितम्बर, 1725 ई. में हुआ था। क्लाइव ने भारत में ईस्ट इण्डिया कम्पनी को मुख्य रूप से मज़बूती प्रदान की थी। क्लाइव ने ही अपनी उच्च महत्त्वाकांक्षाओं और कूटनीति से सम्पूर्ण भारत को अंग्रेज़ों का ग़ुलाम बनाने में मुख्य भूमिका निभाई थी। पहले प्लासी का युद्ध और फिर बक्सर आदि के कई युद्धों को जीतकर क्लाइव ने भारत में ब्रिटिश सत्ता को मज़बूती प्रदान कर दी थी। भारत में मुग़लों का वर्चस्व समाप्त करने में भी क्लाइव का बड़ा योगदान था। हिन्दुस्तान से क्लाइव 1767 ई. में इंग्लैण्ड वापस चला गया, जहाँ 1774 ई. में उसने आत्महत्या कर ली।
भारत आगमन
रॉबर्ट क्लाइव कम्पनी के एक 'क्लर्क' (लिपिक) के रूप में भारत आया था। उसे मुख्य रूप से गवर्नर को पत्र आदि लिखने के कार्य के लिये रखा गया था। वह सदैव अपने साथ तलवार, बन्दूक़ और एक घोड़ा रखता था। क्लाइव को आवश्यकता के अनुसार सैनिकों को कहीं पर भी भेजने और युद्ध लड़ने के अधिकार भी प्राप्त थे। पहली बार वह 1757-1760 ई. और फिर दूसरी बार 1765-1767 ई. तक वह बंगाल का गवर्नर रहा था।
ब्रिटिश साम्राज्य की मजबूती
भारत में अपने कार्यकाल के दौरान रॉबर्ट क्लाइव ने बंगाल में अंग्रेज़ों की स्थिति में सुधार किया और ब्रिटिश साम्राज्य को मजबूती प्रदान की। बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला, अवध के नवाब शुजाउद्दौला और मुग़ल सम्राट शाहआलम द्वितीय, इन तीनों को ही क्लाइव की सूझबूझ, चालाकी और कूटनीति ने परास्त कर दिया था। 23 जून, 1757 ई. को प्लासी का युद्ध और 1764 ई. में बक्सर का युद्ध जीतकर क्लाइव ने बंगाल में ब्रिटिश हुकूमत के विरोध को पूर्णतया समाप्त कर दिया था। 1757 से 1760 ईं. तक बंगाल का गर्वनर रहने के बाद क्लाइव 1760 ई. में इंग्लैंड लौट गया। उसके पश्चात् बंगाल का स्थानापन्न गर्वनर 'होलवेल' बना। तत्पश्चात् 'वेन्सिटार्ट' बंगाल का गर्वनर बना। बक्सर की विजय के उपरान्त क्लाइव को पुनः भारत में अंग्रेज़ी प्रदेशों का मुख्य सेनापति तथा गर्वनर बनाकर भेजा गया था। 10 अप्रैल, 1765 को क्लाइव ने दूसरी बार मद्रास की धरती पर पैर रखा था और 3 मई, 1765 को कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) में कार्यभार ग्रहण किया।
क्लाइव का दूसरा कार्यकाल (1765-1767 ई.)
बक्सर की विजय के उपरान्त क्लाइव को पुनः भारत में अंग्रेज़ी प्रदेशों का मुख्य सेनापति तथा गर्वनर बनाकर भेजा गया। 10 अप्रैल, 1765 को क्लाइव ने दूसरी बार मद्रास की धरती पर पैर रखा और 3 मई, 1765 को कलकत्ता में कार्यभार ग्रहण किया। क्लाइव ने 12 अगस्त, 1765 को मुग़ल सम्राट शाहआलम से इलाहाबाद में एक संधि की, जिसकी शर्तों के अनुसार कम्पनी को बंगाल, बिहार तथा उड़ीसा की दीवानी प्राप्त हुई। सम्राट शाहआलम के लिए इलाहाबाद तथा कड़ा के ज़िले एवं कम्पनी द्वारा प्रति वर्ष 26 लाख रुपये वार्षिक पेंशन देने की व्यवस्था की गई। कम्पनी ने अवध के नवाब से कड़ा और मनिकपुर छीनकर मुग़ल बादशाह को दे दिया। इसे ‘इलाहाबाद की पहली संधि’ के नाम से जाना जाता है। क्लाइव ने अवध के नवाब शुजाउद्दौला के साथ 16 अगस्त, 1765 को एक दूसरी संधि की जिसे ‘इलाहाबाद की दूसरी संधि’ के रूप में जाना जाता है। संधि की शर्तों के अनुसार नवाब ने इलाहाबाद व कड़ा के ज़िले शाहआलम को देने का वायदा किया और युद्ध की क्षतिपूर्ति के लिए उसने कम्पनी को 50 लाख रुपये भी देने का वायदा किया। इन दोनों संधियों के सम्पन्न हो जाने पर कम्पनी की स्थिति अत्यन्त ही मजबूत हो गई।
द्वैध शासन पद्धति
मुख्य लेख : द्वैध शासन पद्धति
क्लाइव ने बंगाल में दोहरी सरकार क़ायम की, जिसमें 'दीवानी' अर्थात् 'भू-राजस्व वसूलने की शक्ति कम्पनी के पास थीं', पर प्रशासन का भार नवाब के कन्धों पर था। क्लाइव के इस प्रशासनिक व्यवस्था की विशेषता उत्तरदायित्वरहित अधिकार और अधिकार रहित उत्तरदायित्व थी। इस तरह दीवानी और निजामत, जिसमें दीवानी के अन्तर्गत राजस्व वसूल करने का अधिकार तथा निजामत के अन्तर्गत सैनिक संरक्षण तथा विदेशी मामलों के अधिकार शामिल थे, पूर्ण रूप से कम्पनी के हाथों में आ गये। द्वैध शासन की व्यवस्था के आधार पर कम्पनी द्वारा वसूले गये राजस्व में से 26 लाख रुपये प्रतिवर्ष सम्राट को तथा 53 लाख रुपये बंगाल के नवाब को शासन के कार्यों के संचालन के लिए दिया जाना था, शेष बचे हुए भाग को वह अपने पास रखने के लिए स्वतन्त्र थी। इस प्रकार कम्पनी ने राजस्व वसूलने का अधिकार तथा नवाब ने शासन चलाने की जिम्मेदारी ग्रहण की। क्लाइव ने मुहम्मद रजा ख़ाँ को बंगाल का तथा राजा शिताब राय को बिहार का दीवान बनाया।
कार्नवालिस का विचार
शीघ्र ही द्वैध शासन प्रणाली का दुष्परिणाम देखने को मिला। देश में क़ानून-व्यवस्था अस्त-व्यस्त हो गई और न्याय मात्र बीते समय की बात होकर रह गया। इस संदर्भ में लॉर्ड कार्नवालिस ने 'हाउस ऑफ़ कामन्स' में कहा कि, मैं निश्चिय पूर्वक कह सकता हूँ कि, 1765-1784 ई. तक ईस्ट इंडिया कम्पनी की सरकार से अधिक भ्रष्ट, झूठी तथा बुरी सरकार संसार के किसी भी सभ्य देश में नहीं थी। द्वैध शासन से कृषि व्यवस्था पर प्रभाव पड़ा, राजस्व वसूली सर्वोच्च बोली बोलने वालों को दी जाने लगी और ऊपर से 1770 ई. में बंगाल के अकाल ने तो कृषकों की जैसे कमर ही तोड़ दी।
इलाहाबाद की सन्धियाँ
क्लाइव ने 12 अगस्त, 1765 को मुग़ल सम्राट शाहआलम द्वितीय से इलाहाबाद में एक सन्धि की, जिसकी शर्तों के अनुसार- कम्पनी को बंगाल, बिहार तथा उड़ीसा की दीवानी प्राप्त हुई। सम्राट शाहआलम के लिए इलाहाबाद तथा कड़ा के ज़िले एवं कम्पनी द्वारा प्रति वर्ष 26 लाख रुपये वार्षिक पेंशन देने की व्यवस्था की गई। कम्पनी ने अवध के नवाब से कड़ा और मनिकपुर छीनकर मुग़ल बादशाह को दे दिया। इसे 'इलाहाबाद की पहली सन्धि' के नाम से जाना जाता है। क्लाइव ने अवध के नवाब शुजाउद्दौला के साथ 16 अगस्त, 1765 को एक सन्धि की, जिसे 'इलाहाबाद की दूसरी सन्धि' के रूप में जाना जाता है। सन्धि की शर्तों के अनुसार- नवाब ने इलाहाबाद व कड़ा के ज़िले शाहआलम द्वितीय को देने का वायदा किया और युद्ध की क्षतिपूर्ति के लिए उसने कम्पनी को 50 लाख रुपये भी देने का वायदा किया। इन दोनों सन्धियों के सम्पन्न हो जाने पर ईस्ट इण्डिया कम्पनी की स्थिति अत्यन्त ही मज़बूत हो गई।
श्वेत विद्रोह
द्वैध शासन का व्यापार तथा व्यवसाय पर भी ग़लत असर पड़ा। भारतीय व्यापारियों के शोषण की गति तीव्र हो गई। बंगाल के वस्त्र तथा रेशम उद्योग इसमें काफ़ी प्रभावित हुए। द्वैध व्यवस्था मात्र ब्रिटिश हित को सर्वोपरि रखती थी। क्लाइव द्वारा निजी व्यापार तथा उपहार लेने पर रोक लगाने से भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिला तथा इसने आन्तरिक कर संग्रह को अनिवार्य बना दिया। क्लाइव ने कम्पनी के सैनिकों के दोहरे भत्ते, जो शांति काल में मिलते थे, पर रोक लगा दी। यह सुविधा केवल बंगाल के सैनिकों को दी जाने लगी, जो बंगाल एवं बिहार की सीमा से बाहर कार्य करते थे। मुंगेर तथा इलाहाबाद में कार्यरत श्वेत सैनिक अधिकारियों ने इस व्यवस्था का विरोध किया, जिसे कालान्तर में श्वेत विद्रोह के नाम से जाना गया। क्लाइव इस विद्रोह को सफलता से दबाने में सफल हुआ।
द्वैध शासन की समाप्ति
द्वैध प्रणाली के अन्तर्गत कृषि को काफ़ी नुकसान हुआ। भूमि कर कृषकों पर बहुत अधिक होता था। भूमि कर संग्रह करने का भार प्रतिवर्ष अधिकाधिक बोली लगाने वाले को सौंप दिया जाता था, जिसकी भूमि में स्थायी रूप से कोई रुचि नहीं थी। सबसे दुःखद घटना थी- 1770 ई. का बंगाल का भंयकर अकाल, जिसमें अत्यधिक जान-माल की क्षति हुई। अकाल के दिनों में भूमिकर दृढ़तापूर्वक वसूल किया गया। कम्पनी के कार्यकर्ताओं ने लोगों की आवश्यक वस्तुओं की क़ीमतों को बढ़ाकर लाभ कमाया। ब्रिटिश राज्य के संस्थापक के रूप में रॉबर्ट क्लाइव के योगदान को विस्मृत नहीं किया जा सकता। उसने कम्पनी के कार्यकर्ताओं के लिए 'सोसायटी ऑफ़ ट्रेड' का निर्माण किया, जिसको नमक, सुपारी एवं तम्बाकू के व्यापार का एकाधिकार प्राप्त था। यह निकाय उत्पादकों के समस्त माल नक़द में लेकर निश्चित केन्द्रों पर फुटकर व्यापारियों को बेच देता था। फ़रवरी, 1767 ई. में क्लाइव इंग्लैण्ड वापस चला गया। क्लाइव का उत्तराधिकारी 'वेरेल्स्ट' (1767-1769 ई.) हुआ, और वेरेल्स्ट का उत्तराधिकारी 'कर्टियर' (1769-72 ई.)। इनके कमज़ोर शासन में क्लाइव की दोहरी सरकार के दुर्गुण पूर्णरूपेण स्पष्ट हो गये। राज्य अत्याचार, भ्रष्टाचार और कष्ट के बोझ से कराहने लगा। अतः 1772 ई. में नियुक्त अगले गवर्नर वारेन हेस्टिंग्स ने द्वैध शासन प्रणाली को समाप्त कर दिया।
- के. एम. पणीक्कर का कहना था कि "1765 से 1772 ई. तक कम्पनी ने बंगाल में डाकुओं का राज्य स्थापित कर दिया। बंगाल को अविवेक रूप से लूटा"।
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