लॉर्ड कैनिंग
लॉर्ड कैनिंग, इसे चार्ल्स जॉन कैनिंग भी कहा जाता है। इनका जन्म 14 दिसम्बर, 1812, लन्दन, इंग्लैण्ड में हुआ और मृत्यु 17 जून, 1862, लन्दन में हुई। ये एक कुशल राजनीतिज्ञ और 1857 के सिपाही विद्रोह के दौरान भारतके गवर्नर-जनरल रहे। कैनिंग 1858 में भारत के पहले वाइसराय बने।
गवर्नर-जनरल का पद
जॉर्ज कैनिंग के सबसे छोटे पुत्र चार्ल्स कैनिंग 1836 से सांसद रहे और 1837 में अपनी माँ से वाइकाउण्ट की उपाधि विरासत में प्राप्त की। 1841 में वह सर रॉबर्ट पील के मंत्रिमण्डल में विदेशी मामलों के राज्य अवर सचिव बने और 1846 से कमिश्नर ऑफ़ वुड्स एण्ड फ़ॉरेस्ट्स रहे। लॉर्ड एबेरडीन (1853-55) के तहत पोस्टमास्टर जनरल बने और 1856 में लॉर्ड पॉमर्स्टन की सरकार द्वारा भारत के गवर्नर-जनरल नियुक्त किए गए। कैनिंग ने तत्काल फ़ारस के शाह के ख़िलाफ़, जिन्होंने अफ़ग़ानिस्तान में ब्रिटेन के सरक्षित राज्य हेरात पर क़ब्ज़ा कर लिया था, फ़ारस की खाड़ी में सैनिक अभियान दल भेजा। इस अभियान दल ने शाह की सेनाओं को हेरात से खदेड़ दिया और अफ़ग़ानिस्तान के शासक दोस्त मुहम्मद के साथ मित्रता कर ली, जो 1857 की सन्धि द्वारा और भी सुदृढ़ हो गई।
भारत में जनजागरण
उसी वर्ष भारत में विद्रोह भड़का, यह एक ऐसा जनजागरण था, जिसने उत्तरी भारत में ब्रिटिश शासन के ख़िलाफ़ व्यापक विद्रोह का रूप ले लिया। कैनिंग ने फ़ौरन अतिरिक्त सहायक सेनाएँ एकत्रित कीं, जिनमें चीन जा रहे ब्रिटिश सैनिक भी शामिल थे और विद्रोहियों के मज़बूत ठिकानों पर फिर से क़ब्ज़ा कर लिया। विद्रोह के दमन के बाद कैनिंग ने भारतीयों को यह विश्वास दिलाने की कोशिश की कि उनका इरादा बदला लेने का न होकर सुलह करने का था।
कैनिंग की नीति
ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी से ब्रिटिश ताज को सत्ता हस्तान्तरित किए जाने के बाद भारत सरकार के पुनर्गठन की कार्यवाही कैनिंग की अध्यक्षता में हुई। उन्हें 1859 में अर्ल की उपाधि प्रदान की गई। 1861 के भारतीय परिषद अधिनियम द्वारा उन्होंने अपनी कार्यकारी परिषद का पुनर्गठन किया और दायित्वों का विभागीय वितरण शुरू किया। उन्होंने परिषद का विस्तार करके भारतीय ग़ैर-सरकारी सदस्यों के लिए जगह बनाई और भारतीय सेना को नया रूप देकर उसमें यूरोपीय अधिकारियों को भर दिया। उन्होंने रेलों के विकास को बढ़ावा दिया और अकाल राहत कार्य शुरू किए। साथ ही कलकत्ता (कोलकाता), बम्बई (मुम्बई) और मद्रास (चेन्नई) विश्वविद्यालयों की स्थापना में मदद दी।
पक्ष-विपक्ष
उन्होंने भारतीय काश्तकारों को बेदख़ल होने या बेहिसाब भाड़ा वृद्धि के ख़िलाफ़ सुरक्षा दिलाने की कोशिश की और यूरोपीय नील उत्पादकों द्वारा उनका शोषण रोकने के लिए हस्तक्षेप किया। लेकिन कैनिंग ने अवध में भू-राजस्व समझौता लागू किया, जो अनुचित रूप से भू-मालिकों के हित में था। अपनी पत्नी की मृत्यु (नवम्बर 1861) के बाद उन्होंने 1862 में अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया। उनकी कोई सन्तान नहीं थी और उनकी उपाधि भी उनके साथ ही समाप्त हो गई।
महत्त्वपूर्ण कार्य
कैनिंग के महत्त्वपूर्ण कार्य इस प्रकार हैं-
- सैन्य सुधार के अन्तर्गत कैंनिग ने भारतीय सैनिकों की संख्या घटाते हुए उनके हाथों से तोपखानें के अधिकार को छीन लिया।
- आर्थिक सुधारों के अन्तर्गत कैंनिंग ने ब्रिटिश अर्थशास्त्री विल्सन को भारत बुलाया।
- कैनिंग ने 500 रु. से अधिक आय पर आयकर लगा दिया और इसके साथ ही आयात पर 10 प्रतिशत तथा निर्यात पर 4 प्रतिशत कर निश्चित कर दिया।
- नमक कर में वृद्धि कर दी तथा तम्बाकू पर भी कर लगाया ।
- 1859 ई. में बंगाल किराया अधिनियम स्वीकृत हुआ जिसमें उन किसानों, जो पिछले 12 वर्षो से लगातार किराये की भूमि पर खेती कर रहे थे या लगातार 20 वर्षो से समान किराये पर खेती कर रहे थे, को भूमि का अधिकारी समझा गया।
- मैकाले के दण्ड विधान, जाब्ता दीवानी व जाब्ता फ़ौजदारी को अन्तिम रूप से 1860 ई. में स्वीकार कर लिया।
- सार्वजनिक सुधारों के तहत कैंनिग ने रेललाइनों, सड़कों व नहरों का निर्माण करवाया।
- 1861 का भारतीय परिषद् अधिनियम इसी के समय में पारित किया गया, जिसमें गवर्नर-जनरल के कौंसिल के सदस्यों की संख्या 4 से बढ़ाकर 5 कर दी गयी। इसी प्रकार लेजिस्लेटिव कौंसिल के सदस्यों की संख्या 4 से बढ़ाकर 12 कर दी गई।
- सामाजिक सुधारों के अन्तर्गत विधवा पुनर्विवाह अधिनियम, 1856 केनिंग के समय में ही पास हुआ।
- 1857 में जिन भारतीय रियासतों ने अंग्रेज़ी राज का समर्थन किया था, उनके लिए 1858 की घोषणा में साम्राज्ञी द्वारा यह प्रण किया गया था कि स्थानीय राजाओं के अधिकारों, गौरव तथा सम्मान को वह अपने सम्मान के बराबर ही मानती है। इसी के समय में विलय की नीति को तिलांजलि देते हुए नवीन नीति अपनायी गयी जिसके अनुसार कुशासन के आरोपी राजाओं को दण्डित करने का प्रावधान तो था, किन्तु उनके राज्य को विलय करने का प्रावधान नहीं था 1879 में मल्हार राव गायकवाढ़ को कुशासन के लिए दण्डित करते हुए सिंहासन से उतार दिया गया किन्तु उनके राज्य को अंग्रेज़ी साम्राज्य में नहीं मिलाया गया।
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