# A R Y A #

મારા આ બ્લોગમા આપ સૌનું હાર્દિક સ્વાગત છે.- ARYA PATEL

Tuesday 23 January 2018

साबरमती आश्रम

साबरमती आश्रम
साबरमती आश्रम, अहमदाबाद
विवरणसाबरमती आश्रम भारत के गुजरातराज्य प्रशासनिक केंद्र अहमदाबाद के समीप साबरमती नदी के किनारे स्थित है।
राज्यगुजरात
ज़िलाअहमदाबाद
प्रबंधकअध्यक्ष:जयेश भाई
स्थापना17 जून, 1917
भौगोलिक स्थितिउत्तर- 23° 3' 36.00", पूर्व- 72° 34' 51.00"
मार्ग स्थितिसाबरमती आश्रम, साबरमती रेलवे स्टेशन से लगभग 5 किमी की दूरी पर स्थित है।
प्रसिद्धिमहात्मा गांधी जी ने 12 मार्च 1930 को साबरमती आश्रम से ही दांडी मार्चआरम्भ किया था।
कैसे पहुँचेंहवाई जहाज़, रेल, बस आदि
हवाई अड्डाअहमदाबाद हवाई अड्डा
रेलवे स्टेशनसाबरमती रेलवे स्टेशन
बस अड्डाधर्म नगर बस अड्डा
यातायातमेट्रो, सिटी बस, टैक्सी, रिक्शा, ऑटो रिक्शा
क्या देखेंहृदय कुंज, विनोबा-मीरा कुटीर, प्रार्थना भूमि, नंदिनी अतिथिगृह, उद्योग मंदिर
कहाँ ठहरेंहोटल, धर्मशाला, अतिथि ग्रह
एस.टी.डी. कोड079
ए.टी.एमलगभग सभी
Map-icon.gifगूगल मानचित्र
संबंधित लेखजामा मस्जिदकाँकरिया झील
अन्य जानकारीबापू जी ने आश्रम में 1915 से 1933 तक निवास किया। जब वे साबरमती में होते थे, तो एक छोटी सी कुटिया में रहते थे जिसे आज भी 'हृदय-कुञ्ज' कहा जाता है।
अद्यतन‎








































साबरमती आश्रम भारत के गुजरात राज्य अहमदाबाद ज़िले के प्रशासनिक केंद्र अहमदाबाद के समीप साबरमती नदी के किनारे स्थित है। महात्मा गांधी जब अपने 25 साथियों के साथ दक्षिणी अफ्रीका से भारत लौटे तो 25 मई1915 को अहमदाबाद में कोचरब स्थान पर "सत्याग्रह आश्रम" की स्थापना की गई। दो वर्ष के पश्चात् जुलाई 1917 में आश्रम साबरमती नदी के किनारे पर बनाया गया जो बाद में साबरमती आश्रम के नाम से प्रसिद्ध हुआ। आश्रम के वर्तमान स्थान के संबंध में इतिहासकारों का मत है कि पौराणिक दधीचि ऋषि का आश्रम भी यहीं पर था।

महत्त्वपूर्ण केंद्र

महात्मा गाँधी के प्रयोगों की शुरुआत यहीं से हुई थी। साबरमती नदी के किनारे बसा यह आश्रम आज़ादी की लड़ाई का महत्त्वपूर्ण केंद्र रहा है। महात्मा गांधी जी ने 12 मार्च 1930 को साबरमती आश्रम से ही दांडी मार्च आरम्भ किया था। 241 मील की दूरी करके 5 अप्रैल 1930 को दांडी पहुंचे और अगले दिन नमक-क़ानूनतोड़ कर स्वतंत्रता संग्राम में एक नया अध्याय जोड़ दिया। जनता में एक नया जोश उमड़ गया और भी कई आंदोलनों की रणनीति यहीं बनी।

निवास स्थान

बापू जी ने आश्रम में 1915 से 1933 तक निवास किया। जब वे साबरमती में होते थे, तो एक छोटी सी कुटिया में रहते थे जिसे आज भी "हृदय-कुञ्ज" कहा जाता है। यह ऐतिहासिक दृष्टि से अमूल्य निधि है जहाँ उनका डेस्क, खादी का कुर्ता, उनके पत्र आदि मौजूद हैं। "हृदय-कुञ्ज" के दाईं ओर "नन्दिनी" है। यह इस समय "अतिथि-कक्ष" है जहाँ देश और विदेश से आए हुर अतिथि ठहराए जाते थे। वहीं "विनोबा कुटीर" है जहाँ आचार्य विनोबा भावे ठहरे थे।
यहाँ विभिन्न गतिविधियों के लिए कई कुटीर बनाए गए हैं, जो इस प्रकार हैं:
हृदय कुंज
हृदय कुंज नामक कुटीर आश्रम के बीचो बीच स्थित है, इसका नामकरण काका साहब कालेकर ने किया था। 1919 से 1930 तक का समय गांधी जी ने यहीं बिताया था और उन्होंने यहीं से ऐतिहासिक दांडी यात्रा की शुरुआत की थी।

चरखा, साबरमती आश्रम, अहमदाबाद
विनोबा-मीरा कुटीर
इसी आश्रम के एक हिस्से में विनोबा-मीरा कुटीर स्थित है। यह वही जगह है, जहाँ 1918 से 1921 के दौरान आचार्य विनोबा भावे ने अपने जीवन के कुछ महीने बिताए थे। इसके अलावा गांधी जी के आदर्शो से प्रभावित ब्रिटिश युवती मेडलीन स्लेड भी 1925 से 1933 तक यहीं रहीं। गांधी जी ने अपनी इस प्रिय शिष्या का नाम मीरा रखा था। इन्हीं दोनों शख्सीयतों के नाम पर इस कुटीर का नामकरण हुआ।
प्रार्थना भूमि
आश्रम में रहने वाले सभी सदस्य प्रतिदिन सुबह-शाम प्रार्थना भूमि में एकत्र होकर प्रार्थना करते थे। यह प्रार्थना भूमि गांधी जी द्वारा लिए गए कई ऐतिहासिक निर्णयों की साक्षी रह चुकी है।
नंदिनी अतिथिगृह
आश्रम के एक मुख्यद्वार से थोडी दूरी पर स्थित है-गेस्ट हाउस नंदिनी। यहाँ देश के कई जाने-माने स्वतंत्रता सेनानी जैसे- पं. जवाहरलाल नेहरूडॉ. राजेंद्र प्रसाद, सी.राजगोपालाचारी, दीनबंधु एंड्रयूज और रवींद्रनाथ टैगोर आदि जब भी अहमदाबाद आते थे तो यहीं ठहरते थे।
उद्योग मंदिर
गांधी जी ने हस्तनिर्मित खादी के माध्यम से देश को आज़ादी दिलाने का संकल्प लिया था। उन्होंने मानवीय श्रम को आत्मनिर्भरता और आत्मसम्मान का प्रतीक बनाया। यही वह जगह थी, जहां गांधी जी ने अपने आर्थिक सिद्धांतों को व्यावहारिक रूप दिया। यहीं से चरखे द्वारा सूत कातकर खादी के वस्त्र बनाने की शुरुआत की गई। देश के कोने-कोने से आने वाले गांधी जी के अनुयायी इसी आश्रम में रहते थे और यहां उन्हें चरखा चलाने और खादी के वस्त्र बनाने का प्रशिक्षण दिया जाता था। आश्रम में उद्योग मंदिर की स्थापना 1918 में अहमदाबाद के टेक्सटाइल मिल के कर्मचारियों की हड़ताल के दौरान की गई थी। इसके अलावा कस्तूरबा की रसोई इस आश्रम के आकर्षण का मुख्य केंद्र है। यहाँ उनकी रसोई में इस्तेमाल किए जाने वाले चूल्हे, बर्तनों और अलमारी को देखा जा सकता है।[1]

No comments:

Post a Comment