अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस
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विवरण | इस दिन को सम्पूर्ण विश्व की महिलाएँ देश, जात-पात, भाषा, राजनीतिक, सांस्कृतिक भेदभाव से परे एकजुट होकर मनाती हैं। |
तिथि | 8 मार्च |
स्थापना | 1910 |
उद्देश्य | यह दिन महिलाओं को उनकी क्षमता, सामाजिक, राजनीतिक व आर्थिक तरक़्क़ी दिलाने व उन महिलाओं को याद करने का दिन है जिन्होंने महिलाओं को उनके अधिकार दिलाने के लिए अथक प्रयास किए। |
विशेष | संयुक्त राष्ट्र हर बार महिला दिवस पर एक थीम रखता है। वर्ष 2015 की थीम है- सशक्त महिला-सशक्त मानवता। महिलाओं को सशक्त करने का अर्थ है 'इंसानियत को बुलंद करना'। |
अन्य जानकारी | दुनिया के प्रमुख विकसित एवं विकासशील देशों में भागदौड़ और आपाधापी से होने वाले तनाव के बारे में किए गए सर्वेक्षण के अनुसार भारत की सर्वाधिक महिलाएँ तनाव में रहती हैं। सर्वे में 87 प्रतिशत भारतीय महिलाओं ने कहा कि ज़्यादातर समय वे तनाव में रहती हैं और 82 प्रतिशत का कहना है कि उनके पास आराम करने के लिए वक़्त नहीं होता। |
बाहरी कड़ियाँ | अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस |
अद्यतन |
13:16, 28 फ़रवरी 2015 (IST)
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अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस (अंग्रेज़ी: International Women's Day) हर वर्ष'8 मार्च' को विश्वभर में मनाया जाता है। इस दिन सम्पूर्ण विश्व की महिलाएँ देश, जात-पात, भाषा, राजनीतिक, सांस्कृतिक भेदभाव से परे एकजुट होकर इस दिन को मनाती हैं। महिला दिवस पर स्त्री की प्रेम, स्नेह व मातृत्व के साथ ही शक्तिसंपन्न स्त्री की मूर्ति सामने आती है। इक्कीसवीं सदी की स्त्री ने स्वयं की शक्ति को पहचान लिया है और काफ़ी हद तक अपने अधिकारों के लिए लड़ना सीख लिया है। आज के समय में स्त्रियों ने सिद्ध किया है कि वे एक-दूसरे की दुश्मन नहीं, सहयोगी हैं।[1] संयुक्त राष्ट्र हर बार महिला दिवस पर एक थीम रखता है। वर्ष 2015 की थीम है- सशक्त महिला-सशक्त मानवता। महिलाओं को सशक्त करने का अर्थ है 'इंसानियत को बुलंद करना'।
“नारी तुम केवल श्रद्धा हो, विश्वास रजत नग पग तल में।
पीयूष स्रोत सी बहा करो, जीवन के सुंदर समतल में।।“
इतिहास
इतिहास के अनुसार आम महिलाओं द्वारा समानाधिकार की यह लड़ाई शुरू की गई थी। लीसिसट्राटा नामक महिला ने प्राचीन ग्रीस में फ्रेंच क्रांति के दौरान युद्ध समाप्ति की मांग रखते हुए आंदोलन की शुरुआत की, फ़ारसी महिलाओं के समूह ने वरसेल्स में इस दिन एक मोर्चा निकाला, इसका उद्देश्य युद्ध के कारण महिलाओं पर बढ़ते अत्याचार को रोकना था। पहली बार सन् 1909 में सोशलिस्ट पार्टी ऑफ़ अमेरिका द्वारा पूरे अमेरिका में 28 फ़रवरी को महिला दिवस मनाया गया था। 1910 में सोशलिस्ट इंटरनेशनल द्वारा कोपेनहेगन में महिला दिवस की स्थापना हुई। 1911 में ऑस्ट्रिया, डेनमार्क, जर्मनी और स्विट्जरलैंड में लाखों महिलाओं ने रैली निकाली। इस रैली में मताधिकार, सरकारी नौकरी में भेदभाव खत्म करने जैसे मुद्दों की मांग उठी। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान, रूसी महिलाओं द्वारा पहली बार शांति की स्थापना के लिए फ़रवरी माह के अंतिम रविवार को महिला दिवस मनाया गया। यूरोप भर में भी युद्ध विरोधी प्रदर्शन हुए। 1917 तक रूस के दो लाख से ज़्यादा सैनिक मारे गए, रूसी महिलाओं ने फिर रोटी और शांति के लिए इस दिन हड़ताल की। हालांकि राजनेता इसके ख़िलाफ़ थे, फिर भी महिलाओं ने आंदोलन जारी रखा और तब रूस के जार को अपनी गद्दी छोड़नी पड़ी और सरकार को महिलाओं को वोट के अधिकार की घोषणा करनी पड़ी।
'महिला दिवस' अब लगभग सभी विकसित, विकासशील देशों में मनाया जाता है। यह दिन महिलाओं को उनकी क्षमता, सामाजिक, राजनीतिक व आर्थिक तरक़्क़ी दिलाने व उन महिलाओं को याद करने का दिन है जिन्होंने महिलाओं को उनके अधिकार दिलाने के लिए अथक प्रयास किए।[2] 'संयुक्त राष्ट्र संघ' ने भी महिलाओं के समानाधिकार को बढ़ावा और सुरक्षा देने के लिए विश्वभर में कुछ नीतियाँ, कार्यक्रम और मापदंड निर्धारित किए हैं। भारत में भी 'महिला दिवस' व्यापक रूप से मनाया जाने लगा है।[3]
'महिला दिवस' अब लगभग सभी विकसित, विकासशील देशों में मनाया जाता है। यह दिन महिलाओं को उनकी क्षमता, सामाजिक, राजनीतिक व आर्थिक तरक़्क़ी दिलाने व उन महिलाओं को याद करने का दिन है जिन्होंने महिलाओं को उनके अधिकार दिलाने के लिए अथक प्रयास किए।[2] 'संयुक्त राष्ट्र संघ' ने भी महिलाओं के समानाधिकार को बढ़ावा और सुरक्षा देने के लिए विश्वभर में कुछ नीतियाँ, कार्यक्रम और मापदंड निर्धारित किए हैं। भारत में भी 'महिला दिवस' व्यापक रूप से मनाया जाने लगा है।[3]
प्रगति, दुर्गति में परिणीत
समाज में यह विषमता चारों तरफ है और महिलाओं को लेकर भी यह सहज स्वाभाविक है। महिलाओं की प्रगति बदलाव की बयार में दुर्गति में अधिक परिणीत हुई है। हम बार-बार आगे बढ़कर पीछे खिसके हैं। बात चाहे अलग-अलग तरीक़े से किए गए बलात्कार या हत्या की हो, खौफनाक फरमानों की या महिला अस्मिता से जुड़े किसी विलंबित अदालती फैसले की। कहीं ना कहीं महिला कहलाए जाने वाला वर्ग हैरान और हतप्रभ ही नज़र आया है।[2]
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