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Saturday, 8 September 2018

मोरारजी देसाई जन्म: 29 फरवरी 1896, भदेली, ब्रिटिश प्रेसीडेंसी   मृत्यु: 10 अप्रैल 1995, दिल्ली



मोरारजी देसाई

जन्म: 29 फरवरी 1896, भदेली, ब्रिटिश प्रेसीडेंसी

 

मृत्यु: 10 अप्रैल 1995, दिल्ली

 

कार्य: स्वतंत्रता सेनानी, भारत के पूर्व प्रधानमंत्री

 

मोरारजी देसाई भारत के स्वाधीनता सेनानी और देश के छ्ठे प्रधानमंत्री थे। वह पहले गैर कांग्रेसी प्रथम प्रधानमंत्री थे। 81 वर्ष की उम्र में प्रधानमंत्री बनने वाले मोरारजी एकमात्र ऐसे व्यक्ति हैं जिन्हें भारत के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न एवं पाकिस्तान के सर्वोच्च सम्मान निशान-ए-पाकिस्तान से सम्मानित किया गया है। प्रधानमंत्री बनने से पहले वो भारत सरकार में उप-प्रधानमंत्री और अन्य मंत्रलयों का कारभार संभल चुके थे। मोरारजी बॉम्बे राज्य के मुख्यमंत्री भी रह चुके थे। उनको भारत और पाकिस्तान के मध्य शांति स्थापित करने के प्रयासों के लिए भी जाना जाता है। सन 1974 में भारत के प्रथम नाभिकीय परिक्षण के बाद उन्होंने पाकिस्तान और चीन के साथ मित्रता बहाल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने भारत की ख़ुफ़िया एजेंसी रॉ को भी बंद करने की कोशिश की।

 

प्रारंभिक जीवन

 

मोरारजी देसाई का जन्म 29 फ़रवरी 1896 को गुजरात के बुलसर जिले के भदेली नामक गाँव में हुआ था। उनके पिता रणछोड़जी देसाई भावनगर में एक स्कूल अध्यापक थे और बाद में मानसिक अवसाद से ग्रस्त रहने के कारण उन्होंने आत्म-हत्या कर ली थी। मोरारजी ने अपनी प्राथमिक शिक्षा सौराष्ट्र के द कुंडला स्कूल ग्रहण की और बाद में वलसाड़ के बाई अव हाई स्कूल में दाखिला लिया। मुंबई के विल्सन कॉलेज से स्त्नातक करने के बाद वो गुजरात सिविल सेवा में शामिल हो गए। सन 1927-28 के दौरान गोधरा में हुए दंगों में उनपर पक्षपात का आरोप लगा जिसके स्वरुप उन्होंने सन 1930 में गोधरा के डिप्टी कलेक्टर के पद से इस्तीफा दे दिया।

 

स्वाधीनता आन्दोलन और राजनीतिक जीवन

 

सरकारी नौकरी छोड़ने का बाद मोरारजी देसाई स्वाधीनता आन्दोलन में कूद पड़े। इसके बाद उन्होंने महात्मा गाँधी के नेतृत्व में अंग्रेजों के विरूद्ध सविनय अवज्ञा आन्दोलन में भाग लिया। स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान मोरारजी कई बार जेल गए। सन 1931 में वह गुजरात प्रदेश की कांग्रेस कमेटी के सचिव बने और फिर अखिल भारतीय युवा कांग्रेस की शाखा स्थापित कर उसके अध्यक्ष बन गए। अपने नेतृत्व कौशल से वह स्वतंत्रता सेनानियों के चहेते और गुजरात कांग्रेस के महत्वपूर्ण नेता बन गए। सन 1934 और 1937 के प्रांतीय चुनाव के बाद उन्हें बॉम्बे प्रेसीडेंसी का राजस्व और गृह मंत्रालय सौंपा गया।

 

जैसा की ऊपर कहा जा चुका है कि स्वाधीनता आन्दोलन के दौरान राष्ट्रीय राजनीति में मोरारजी का नाम वज़नदार हो चुका था पर उनकी प्राथमिक रुचि राज्य की राजनीति में ही थी इसलिए 1952 में इन्हें बंबई प्रान्त का मुख्यमंत्री बनाया गया। गुजरात तथा महाराष्ट्र दोनों बंबई प्रोविंस के अंतर्गत आते थे। इसी दौरान भाषाई आधार पर दो अलग राज्य – माहाराष्ट्र (मराठी भाषी क्षेत्र) और गुजरात (गुजरात भाषी क्षेत्र) – बनाने की मांग बढ़ने लगी पर मोरारजी इस तरह के विभाजन के लिए तैयार नहीं थे। सन 1960 में मोरारजी ने संयुक्त महाराष्ट्र समिति के प्रदर्शनकारियों पर गोली चलने आ आदेश इया जिसमे लगभग 105 लोग मारे गए। इस घटना के बाद मोरारजी को बॉम्बे के मुख्य मंत्री पद से हटाकर केंद्र में में बुला लिया गया।

 

केंद्र सरकार में मोरारजी को गृह मंत्री बनाया गया। गृह मंत्री के तौर पर उन्होंने फिल्मों और नाटकों के मंचन में अभद्रता प्रतिबंधित कर दिया था। वह नेहरु के समाजवाद का विरोध करते थे। एक राष्ट्रवादी और भ्रष्टाचार विरोधी नेता के तौर पर उनका कद कांग्रेस पार्टी में बढता जा रहा था और नेहरु के बाद उन्हें भावी प्रधानमंत्री के रूप में देखा जाने लगा। लेकिन जवाहरलाल नेहरु की मृत्यु के बाद लाल बहादुर शाष्त्री को प्रधानमंत्री बनाया गया और मोरारजी को झटका लगा।

 

नियति का संयोग ऐसा हुआ की शाष्त्री के अकस्मात् मृत्यु के बाद महज 18 महीने के बाद ही प्रधानमंत्री की कुर्सी एक बार फिर खाली हो गयी। शाष्त्री की मृत्यु के बाद कांग्रेस अध्यक्ष के. कामराज ने पंडित नेहरु की बेटी इंदिरा गाँधी का नाम प्रधानमंत्री पद के लिए सुझाया पर मोरारजी देसाई ने भी प्रधानमंत्री पद के लिए स्वयं का नाम प्रस्तावित कर दिया। कांग्रेस संसदीय पार्टी द्वारा मतदान के माध्यम से इस गतिरोध को सुलझाया गया और इंदिरा गाँधी विजयी हुई। इसके बाद मोरारजी इंदिरा गाँधी मंत्रिमंडल में उप-प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री बने। वर्ष 1969 में जब इंदिरा ने उनसे वित्त मंत्रालय वापस ले लिया तब उन्होंने मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद कांग्रेस का विभाजन दो खंडो में हो गया। एक के नेता मोरारजी थे और दूसरे की इंदिरा गाँधी।

 

सन 1971 के लोक सभा चुनाव में इंदिरा गाँधी को अपार सफलता मिली जबकि मोरारजी (जो खुद चुनाव जीत गए थे) का गुट कुछ ख़ास नहीं कर सका।

 

12 मार्च 1975 को मोरारजी देसाई ने गुजरात के नवनिर्माण आन्दोलन के समर्थन में आमरण अनसन प्रारंभ किया।

 

सन 1975 में जब इलाहाबाद उच्च न्यायलय ने इंदिरा गाँधी के 1971 के चुनाव को अवैध करार दिया तब विपक्ष ने एकजुट होकर उनके इस्तीफे की मांग की जिसके बाद देश में आपातकाल लागू कर दिया गया और मोरारजी देसाई समेत सभी बड़े नेताओं को जेल भेज दिया गया।

 

सन 1977 में जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में भ्रष्टाचार-विरोधी आन्दोलन और आपातकाल-विरोधी हवा ने लोक सभा चुनाव में उत्तर भारत में कांग्रेस का सफाय कर दिया और मोरारजी देसाई के नेतृत्व में जनता पार्टी की सरकार बनी।

 

प्रधानमंत्री पद (1977-1979)

 

मार्च 1977 के लोकसभा चुनाव में जनता पार्टी को स्पष्ट बहुमत प्राप्त हुआ पर इस समय भी मोरारजी के अलावा प्रधानमंत्री पद के दो अन्य दावेदार भी उपस्थित थे – चौधरी चरण सिंह और जगजीवन राम – पर जयप्रकाश नारायण ने मोरारजी देसाई का समर्थन किया।

 

इस प्रकार 81 वर्ष की उम्र में मोरारजी देसाई भारत के प्रधानमंत्री बने। इनके शासन के दौरान, कांग्रेस शाषित नौ राज्यों की सरकारों को भंग कर दिया गया और नए चुनाव कराये जाने की घोषणा कर दी गई। सरकार का यह कदम साफ़-साफ़ बदले की भावना से प्रेरित, अलोकतांत्रिक और असंवैधानिक था।

 

मोरारजी देसाई ने पड़ोसी मुल्कों पाकिस्तान और चीन से रिश्ते सुधारने की दिशा में पहल किया। उन्होंने चीन के साथ राजनयिक संबंधो को बहाल किया और इंदिरा गाँधी सरकार द्वारा किये गए बहुत सारे संवैधानिक संशोधनों को उनके मूल रूप में वापस कर दिया।

 

चुनाव प्रचार के दौरान मोरारजी देसाई ने भारत के ख़ुफ़िया एजेंसी रॉ को बंद करने की बात कही थी और जब वो प्रधानमंत्री बने तब उन्होंने सचमुच एजेंसी का अकार और बजट बहुत कम कर दिया था।

 

जनता पार्टी भ्रष्टाचार और आपातकाल जैसे मुद्दों के बल पर कांग्रेस को हराकर सरकार बनाने में सफल हुई थी पर घटक दलों की आपसी कलह ने सरकार को बहुत नुक्सान पहुँचाया और जन 1979 में राज नारायण और चौधरी चरण सिंह ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया तब मात्र दो साल की अल्प अवधि में ही मोरारजी देसाई को प्रधानमंत्री पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा।

 

निधन

 

प्रधानमंत्री पद से इस्तीफे के बाद मोरारजी देसाई ने 83 साल की उम्र में राजनीति से संन्यास ले लिया और मुंबई में रहने लगे। 10 अप्रैल 1995 को 99 वर्ष की उम्र में उनका निधन हो गया।


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