आर्यों का आगमन
वास्तव में आर्यन उन लोगों को कहा जाता था जो प्राचीन इंडो-युरोपियन भाषा बोलते थे और जो प्राचीन ईरान और उत्तर भारतीय महाद्वीपों में बसने की सोचते थे | आर्यन भारत में पूर्व वैदिक काल मे बसे | इसे सप्तसिंधु या सात नदियों झेलम, चेनाब, रावी, ब्यास, सतलुज, सिंधु और सरस्वती की धरा कहा गया |
घटना क्रम :
1500 B .C और 600 B .C के युग को पूर्व वैदिक युग (ऋग वैदिक काल) तथा बाद के वैदिक युग में विभाजित किया गया |
पूर्व वैदिक काल : 1500 B .C – 1000 B . C ; यह वह युग था जब आर्यन्स भारत पर आक्रमण कर सकते थे |
बाद का वैदिक युग : 1000 B . C – 600 B . C
वैदिक काल की विशेषताएँ
शब्दों की बुनियाद से निकला वेद शब्द का अर्थ है “जानना” या “उच्च विद्या” | चार प्रकार के महत्वपूर्ण वेद हैं:
ऋगवेद : यह 10 किताबों से बना है और इसमे 1028 भजन हैं जिन्हे अलग अलग ईश्वरों के लिए गाया गया है | मण्डल II से VII को पारिवारिक पुस्तक के नाम से जानते थे क्यूंकि यह पारिवारिक कथाओं जैसे गृतसमदा, विश्वामित्र, बामदेव, आरती, भारद्व्जा और वसीष्ठा पर आधारित थे |
यजुर्वेद : यह राजनीतिक जीवन, सामाजिक जीवन, नियम और कायदों के बारे में बताता है जिन्हे हमे मानना चाहिए | यह कृष्ण यजुर वेद और शुक्ल यजुर वेद में विभाजित हैं |
सामवेद : यह कीर्तन व प्रार्थनाओं की किताब है और इसमे 1810 भजन हैं |
अथर्ववेद : यह जादुई वचनों , भारतीय औषिधियों और लोक नृत्य पर आधारित है |
ब्राह्मण
ये वेदों की द्वितीय क्ष्रेणी से तालुक्क रखते हैं और इनका संबंध प्रार्थना और बलिदानों के समारोहों से है |
तंद्यमहा ब्राह्मण को सबसे पुराने ब्राह्मण माना जाता था और इनकी कई पौराणिक कथाएँ हैं |
व्रत्यसोमा एक समारोह है जिसमे इन पौराणिक कथाएँ के द्वारा गैर आर्यन को आर्यन में बदला जाता था |
सतपथा एक बहुत महत्वपूर्ण तथा विस्तीर्ण ब्राह्मण है | यह वैदिक काल के दर्शन शास्त्र, धर्म शास्त्र, शैली और रीति-रिवाज के बारे में बताता है |
ब्राह्मण का आखिरी भाग अरण्यकस था | इसके दो भाग ऋगवेद से जुड़े थे ; आइतारेय और कौसितकी |
108 प्रकार के दर्शन शास्त्र हैं जिनका सीधा संबंध आत्मा से है | इन्हे उपनिषद कहते हैं |
बृहदर्णयका और चंदोग्य सबसे पुराने उपनिषद हैं |
यह वचन “सत्यमेव जयते” मुंडका उपनिषद से लिया गया है|
आर्यन का संघर्ष
आर्यन के प्रथम दस्ते ने भारत में लगभग 1500 B . C में आक्रमण किया |
उन्हें भारत के मूल निवासियों जैसे दास व दस्यु से संघर्ष करना पड़ा|
हालांकि दास को आर्यन की तरफ से कभी भी आक्रमण के लिए उत्तेजित नहीं किया गया, पर दस्यु हत्या का ऋग वेद में बारबार उल्लेख किया गया है |
इन्द्र को ऋग वेद में पुरान्द्र के नाम से भी उल्लेख किया गया है जिसे किलों का भंजक भी कहा गया है |
पूर्व आर्यन के किलों का उल्लेख हरप्पा संस्कृति की वजह से भी किया गया है |
आर्यन मूल निवासियों पर इसलिए भी विजय प्राप्त कर पाये क्यूंकि उनके पास बेहतर हथियार,वरमान, तथा घोड़े वाले रथ थे |
आर्यन् दो तरह के संघर्षों में व्यस्त रहे एक तो स्वदेशी लोग व अपने आप में |
आर्यन को पाँच आदिवासी जातियों में विभाजित किया गया जिसे पंचजन कहा गया तथा गैर आर्यन की भी मदद प्राप्त की |
आर्यन गोत्र के शासक भरत व त्रित्सु थे जिन्हे वसिष्ठ पुरोहित मदद करते थे |
भारतवर्ष देश का नाम राजा भरत के ऊपर रखा गया
दसराजन युद्ध
भारत पर भरत गोत्र के राजा ने शासन किया तथा उन्हें दस राजाओं का विरोध भी झेलना पड़ा; पाँच आर्यन तथा पाँच गैर आर्यन|
इनके बीच में हुए युद्ध को दस राजाओं के युद्ध या दसराजन युद्ध के नाम से जाना गया |
परुषनी या रावी नदी पर किया गया युद्ध सूद के द्वारा जीता गया |
बाद में भरत ने पुरू के साथ नाता जोड़ लिया जिससे कुरु नाम का नया गोत्र बना |
बाद के वैदिक युग में कुरु व पांचालों ने गंगा के ऊपरी पठारों की राजनीति में एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा की जहाँ उन्होने एक साथ राज किया |
वैदिक काल में नदियाँ
सप्त सिंधु शब्द या सात मुख्य नदियों के समूह का भारत के ऋग वेद में उल्लेख किया गया है |
वे सात नदियाँ थीं:
पूर्व में सरस्वती
पश्चिम में सिंधु
सतुद्रु (सतलुज)
विपासा (ब्यास)
असिक्नी(चेनाब)
परुषनी(रावी) और
वितस्ता( झेलम)
No comments:
Post a Comment