कमलादेवी चट्टोपाध्याय
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पूरा नाम | कमलादेवी चट्टोपाध्याय |
जन्म | 3 अप्रैल, 1903 |
जन्म भूमि | मंगलोर, कर्नाटक |
मृत्यु | 29 अक्टूबर, 1988 |
पति/पत्नी | कृष्णा राव (1917–1919), हरिन्द्रनाथ चट्टोपाध्याय (1919–1988) |
संतान | रामकृष्ण चट्टोपाध्याय |
नागरिकता | भारतीय |
प्रसिद्धि | समाज सुधारक, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी |
आंदोलन | नमक आंदोलन और असहयोग आन्दोलन |
पुरस्कार-उपाधि | पद्म भूषण (1955), पद्म विभूषण(1987), रेमन मैग्सेसे पुरस्कार(1988) |
अन्य जानकारी | आजादी के बाद इन्हें वर्ष 1952 में ‘आल इंडिया हेंडीक्राफ्ट’ का प्रमुख नियुक्त किया गया। ग्रामीण इलाकों में इन्होंने घूम-घूम कर एक पारखी की तरह हस्तशिल्प और हथकरघा कलाओं का संग्रह किया। |
बाहरी कड़ियाँ | कमलादेवी ने भारत के स्वाधीनता संग्राम में हिस्सा लिया तथा अनेकों बार जेल गयी। |
अद्यतन |
17:28, 22 दिसम्बर 2017 (IST)
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कमलादेवी चट्टोपाध्याय (अंग्रेज़ी: Kamaladevi Chattopadhyay, जन्म: 3 अप्रैल, 1903; मृत्यु: 29 अक्टूबर, 1988) भारत की समाज सुधारक, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, तथा भारतीय हस्तकला के क्षेत्र में नवजागरण लाने वाली गाँधीवादी महिला थीं। उन्हे समाज सेवा के लिए 1955 में पद्म भूषण और सामुदायिक नेतृत्व के लिए सन 1966 में रेमन मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
जीवन परिचय
कमलादेवी चट्टोपाध्याय का जन्म कर्नाटक के एक सम्पन्न ब्राह्मण परिवार, में 3 अप्रैल, सन् 1903 में हुआ था। उन्होंने मंगलोर तथा बाद में लन्दन के अर्थशास्त्र स्कूल से शिक्षा ग्रहण की। उनकी शादी अत्यन्त छोटी अवस्था में हो गयी तथा स्कूली शिक्षा के दौरान विधवा हो गयी थी। बाद में उन्होंने अपनी पसन्द के व्यक्ति हरेन्द्रनाथ चट्टोपाध्याय से वैवाहिक संबंध जोड़ दिया। कमलादेवी ने अपनी पति के साथ व्यापक रूप से यात्राएं की। वे एक सामाजिक कार्यकर्ता और कला और साहित्य की समर्थक थी।[1]
महिला आन्दोलन में योगदान
प्रकृति की दीवानी कमला देवी ने ‘ऑल इंडिया वीमेन्स कांफ्रेंस’ की स्थापना की। ये बहुत दिलेर थीं और पहली ऐसी भारतीय महिला थीं, जिन्होंने 1920 के दशक में खुले राजनीतिक चुनाव में खड़े होने का साहस जुटाया था, वह भी ऐसे समय में जब बहुसंख्यक भारतीय महिलाओं को आजादी शब्द का अर्थ भी नहीं मालूम था। ये गाँधी जी के ‘नमक आंदोलन’ (वर्ष 1930) और ‘असहयोग आंदोलन’ में हिस्सा लेने वाली महिलाओं में से एक थीं। नमक कानून तोड़ने के मामले में बांबे प्रेसीडेंसी में गिरफ्तार होने वाली वे पहली महिला थीं। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान वे चार बार जेल गईं और पांच साल तक सलाखों के पीछे रहीं।[2]
हस्तशिल्प तथा हथकरघा कला को विकसित करने में योगदान
कमलादेवी चट्टोपाध्याय ने देश के विभिन्न हिस्सों में बिखरी समृद्ध हस्तशिल्प तथा हथकरघा कलाओं की खोज की दिशा में अद्भुत एवं सराहनीय कार्य किया। कमला चट्टोपाध्याय पहली भारतीय महिला थीं, जिन्होंने हथकरघा और हस्तशिल्प को न केवल राष्ट्रीय बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई।
आजादी के बाद इन्हें वर्ष 1952 में ‘आल इंडिया हेंडीक्राफ्ट’ का प्रमुख नियुक्त किया गया। ग्रामीण इलाकों में इन्होंने घूम-घूम कर एक पारखी की तरह हस्तशिल्प और हथकरघा कलाओं का संग्रह किया। इन्होंने देश के बुनकरों के लिए जिस शिद्दत के साथ काम किया, उसका असर यह था कि जब ये गांवों में जाती थीं, तो हस्तशिल्पी, बुनकर, जुलाहे, सुनार अपने सिर से पगड़ी उतार कर इनके कदमों में रख देते थे। इसी समुदाय ने इनके अथक और निःस्वार्थ मां के समान सेवा की भावना से प्रेरित होकर इनको ‘हथकरघा मां’ का नाम दिया था।[2]
देश के प्रमुख सांस्कृतिक और आर्थिक संस्थनों की स्थापना में योगदान
भारत में आज अनेक प्रमुख सांस्कृतिक संस्थान इनकी दूरदृष्टि और पक्के इरादे के परिणाम हैं. जिनमें प्रमुख हैं- नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा, संगीत नाटक अकेडमी, सेन्ट्रल कॉटेज इंडस्ट्रीज एम्पोरियम और क्राफ्ट कौंसिल ऑफ इंडिया। इन्होंने हस्तशिल्प और को-ओपरेटिव आंदोलनों को बढ़ावा देकर भारतीय जनता को सामाजिक और आर्थिक रूप से विकसित करने में अपना योगदान दिया। हालांकि इन कार्यों को करते समय इन्हें आजादी से पहले और बाद में सरकार से भी संघर्ष करना पड़ा।[2]
पुस्तकें
कमलादेवी चट्टोपाध्याय ने ‘द अवेकिंग ऑफ इंडियन वोमेन’ वर्ष 1939, ‘जापान इट्स विकनेस एंड स्ट्रेन्थ’ वर्ष 1943, ‘अंकल सैम एम्पायर’ वर्ष 1944, ‘इन वार-टॉर्न चाइना’ वर्ष 1944 और ‘टुवर्ड्स ए नेशनल थिएटर’ नामक पुस्तकें भी लिखीं, जो बहुत चर्चित रहीं।[2]
व्यक्तित्व
कमलादेवी चट्टोपाध्याय ब्राह्मण होते हुए समाजवादी थीं। बालिका वधू होते हुये वो स्त्री अधिकारवादी थीं। एक ऐसी राजनेता थीं जिन्हें कुर्सी की दरकार नहीं थी। एक ऐसी कुलीन वर्ग की महिला जिन्होंने लोक कलाओं को पुनर्जीवित किया। गांधीजी के नमक आंदोलन में गिरफ्तारी देने वाली पहली महिलाओं में से एक थीं कमलादेवी। विभाजन के बाद उन्होंने शरणार्थियों के पुनर्वास में अपने आप को झोंक दिया। कमला देवीगाँधी जी, जवाहर लाल नेहरू, मौलाना अबुल कलाम आज़ाद, सरोजनी नायडू तथा कस्तूरबा गांधी से गहरे रूप से प्रभावित थी। उन्होंने स्वाधीनता संघर्ष में हिस्सा लिया तथा अनेकों बार जेल गयी।
सम्मान और पुरस्कार
- समाज सेवा के लिए भारत सरकार ने इन्हें नागरिक सम्मान ‘पद्म भूषण’ से वर्ष 1955 में सम्मानित किया।
- वर्ष 1987 में भारत सरकार ने अपने दूसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान ‘पद्म विभूषण’ से इन्हें सम्मानित किया।
- सामुदायिक नेतृत्व के लिए वर्ष 1966 में इन्हें ‘रेमन मैग्सेसे’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
- इन्हें संगीत नाटक अकादमी की द्वारा ‘फेलोशिप और रत्न सदस्य’ से सम्मानित किया गया।
- संगीत नाटक अकादमी के द्वारा ही वर्ष 1974 में इन्हें ‘लाइफटाइम अचिवेमेंट’ पुरस्कार भी प्रदान किया गया था।
- यूनेस्को ने इन्हें वर्ष 1977 में हेंडीक्राफ्ट को बढ़ावा देने के लिए सम्मानित किया था।
- शान्ति निकेतन ने अपने सर्वोच्च सम्मान ‘देसिकोट्टम’ से सम्मानित किया।[2]
निधन
कमला देवी भारत में नारी आन्दोलन की पथप्रदर्शक थी। सन् 29 अक्टूबर 1988 में वे स्वर्गवासी हो गयी।
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