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Wednesday 11 December 2019

प्राचीन बिहार का इतिहास - 2

प्राचीन बिहार का इतिहास - 2

पाल वंश

यह पूर्व मध्यकालीन राजवंश था। जब हर्षवर्धन काल के बाद समस्त उत्तरी भारत में राजनीतिक, सामाजिक एवं आर्थिक गहरा संकट उत्पन६न हो गया, तब बिहार, बंगाल और उड़ीसा के सम्पूर्ण क्षेत्र में पूरी तरह अराजकत फैली थी।
इसी समय गोपाल ने बंगाल में एक स्वतन्त्र राज्य घोषित किया। जनता द्वारा गोपाल को सिंहासन पर आसीन किया गया था। वह योग्य और कुशल शासक था, जिसने ७५० ई. से ७७० ई. तक शासन किया। इस दौरान उसने औदंतपुरी (बिहार शरीफ) में एक मठ तथा विश्‍वविद्यालय का निर्माण करवाया। पाल शासक बौद्ध धर्म को मानते थे। आठवीं सदी के मध्य में पूर्वी भारत में पाल वंश का उदय हुआ। गोपाल को पाल वंश का संस्थापक माना जाता है।
धर्मपाल (७७०-८१० ई.)- गोपाल के बाद उसका पुत्र धर्मपाल ७७० ई. में सिंहासन पर बैठा। धर्मपाल ने ४० वर्षों तक शासन किया। धर्मपाल ने कन्‍नौज के लिए त्रिदलीय संघर्ष में उलझा रहा। उसने कन्‍नौज की गद्दी से इंद्रायूध को हराकर चक्रायुध को आसीन किया। चक्रायुध को गद्दी पर बैठाने के बाद उसने एक भव्य दरबार का आयोजन किया तथा उत्तरापथ स्वामिन की उपाधि धारण की। धर्मपाल बौद्ध धर्मावलम्बी था। उसने काफी मठ व बौद्ध विहार बनवाये।
उसने भागलपुर जिले में स्थित विक्रमशिला विश्‍वविद्यालय का निर्माण करवाया था। उसके देखभाल के लिए सौ गाँव दान में दिये थे। उल्लेखनीय है कि प्रतिहार राजा नागभट्ट द्वितीय एवं राष्ट्रकूट राजा ध्रुव ने धर्मपाल को पराजित किया था।
देवपाल (८१०-८५० ई.)-

●धर्मपाल के बाद उसका पुत्र देवपाल गद्दी पर बैठा।
●इसने अपने पिता के अनुसार विस्तारवादी नीति का अनुसरण किया।
●देवपाल के शासनकाल में अरब यात्री सुलेमान आया था।
●देवपाल ने मुंगेर को अपनी राजधानी बनाई। उसने पूर्वोत्तर में प्राज्योतिषपुर, उत्तर में नेपाल, पूर्वी तट पर उड़ीसा तक विस्तार किया।
● कन्‍नौज के संघर्ष में देवपाल ने भाग लिया था। उसके शासनकाल में दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ भी मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध रहे।
●देवपाल ने जावा के शासक बालपुत्रदेव के आग्रह पर नालन्दा में एक विहार की देखरेख के लिए ५ गाँव अनुदान में दिए।
  • देवपाल ने ८५० ई. तक शासन किया था। देवपाल के बाद पाल वंश की अवनति प्रारम्भ हो गयी। मिहिरभोज और महेन्द्रपाल के शासनकाल में प्रतिहारों ने पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार के अधिकांश भागों पर अधिकार कर लिया।
  • ११वीं सदी में महीपाल प्रथम ने ९८८ ई.-१००८ ई. तक शासन किया। महीफाल को पाल वंश का द्वितीय संस्थापक कहा जाता है। उसने समस्त बंगाल और मगध पर शासन किया।
  • महीपाल के बाद पाल वंशीय शासक निर्बल थे जिससे आन्तरिक द्वेष और सामन्तों ने विद्रोह उत्पन्‍न कर दिया था। बंगाल में केवर्त, उत्तरी बिहार मॆम सेन आदि शक्‍तिशाली हो गये थे।
  • रामपाल के निधन के बाद गहड़वालों ने बिहार में शाहाबाद और गया तक विस्तार किया था।
  • सेन शसकों वल्लासेन और विजयसेन ने भी अपनी सत्ता का विस्तार किया।
  • इस अराजकता के परिवेश में तुर्कों का आक्रमण प्रारम्भ हो गया।

मिथिला के कर्नाट शासक:-


●रामपाल के शासनकाल में १०९७ ई. से १०९८ ई. तक में ही तिरहुत में कर्नाट राज्य का उदय हो गया।
●कर्नाट राज्य का संस्थापक नान्यदेव था।
●नन्यदेव एक महान शासक था। उनका पुत्र गंगदेव एक योग्य शासक बना।
●नान्यदेव ने कर्नाट की राजधानी सिमरॉवगढ़ बनाई।
●कर्नाट शासकों का इस वंश का मिथिला का स्वर्ण युग भी कहा जाता है।
★वैन वार वंश के शासन तक मिथिला में स्थिरता और प्रगति हुई। नान्यदेव के साथ सेन वंश राजाओं से युद्ध होता रहता था।

सेनवंश:-
●सामन्त सेन सेन वंश का संस्थापक था। विजय सेन, बल्लाल्सेन, लक्ष्मण सेन आदि शासक बने।
●सेन वंश के शासकों ने बंगाल और बिहार पर शासन किया।
●विजय सेन शैव धर्मानुयायी था। उसने बंगाल के देवपाड़ा में एक झील का निर्माण करवाया।
●विजय एक लेखक भी थे जिसने ‘दान सागर’ और ‘अद्‍भुत सागर’ दो ग्रन्थों की रचना की।
●लक्ष्मण सेन सेन वंश का अन्तिम शासक था।
●हल्लायुद्ध इसका प्रसिद्ध मन्त्री एवं न्यायाधीश था।
●गीत गोविन्द के रचयिता जयदेव भी लक्ष्मण सेन शासक के दरबारी कवि थे।
●लक्ष्मण सेन वैष्णव धर्मानुयायी था।
  • सेन राजाओं ने अपना साम्राज्य विस्तार क्रम में ११६० ई. में गया के शासक गोविन्दपाल से युद्ध हुआ। ११२४ ई. में गहड़वाल शासक गोविन्द पाल ने मनेर तक अभियान चलाया।
  • जयचन्द्र ने ११७५-७६ ई. में पटना और ११८३ ई. के मध्य गया को अपने राज्य में सम्मिलित कर लिया।
  • कर्नाट वंश के शासक नरसिंह देव बंगाल के शासक से परेशान होकर उसने तुर्की का सहयोग लिया।
  • उसी समय बख्तियार खिलजी भी बिहार आया और नरदेव सिंह को धन देकर उसे सन्तुष्ट कर लिया और नरदेव सिंह का साम्राज्य तिरहुत से दरभंगा क्षेत्र तक फैल गया।
  • कर्नाट वंश के शासक ने सामान्य रूप से दिल्ली सल्तनत के प्रान्तपति नियुक्‍त किये गये
  • बिहार और बंगाल पर गयासुद्दीन तुगलक ने १३२४-२५ ई. में आधिपत्य कर लिया। उस समय तिरहुत का शासक हरिसिंह था। 
  • हरिसिंह तुर्क सेना से हार मानकर नेपाल की तराई में जा छिपा। इस प्रकार उत्तरी और पूर्व मध्य बिहार से कर्नाट वंश १३७८ ई. में समाप्त हो गया।

आदित्य सेन- 

माधवगुप्त की मृत्यु ६५० ई. के बाद उसका पुत्र आदित्य सेन मगध की गद्दी पर बैठा। वह एक वीर योद्धा और कुशल प्रशासक था।
  • अफसढ़ और शाहपुर के लेखों से मगध पर उसका आधिपत्य प्रंआनित होता है।
  • मंदार पर्वत में लेख के अंग राज्य पर आदित्य सेन के अधिकार का उल्लेख है। उसने तीन अश्‍वमेध यज्ञ किये थे।
  • मंदार पर्वत पर स्थित शिलालेख से पता चलता है कि चोल राज्य की विजय की थी।
  • आदित्य सेन के राज्य में उत्तर प्रदेश के आगरा और अवध के अन्तर्गत एक विस्तृत साम्राज्य स्थापित करने वाला प्रथम शासक था।
  • उसने अपने पूर्वगामी गुप्त सम्राटों की परम्परा का पुनरूज्जीवन किया। उसके शासनकाल में चीनी राजदूत वांग यूएन त्से ने दो बार भारत की यात्रा की।
  • कोरियन बौद्ध यात्री के अनुसार उसने बोधगया में एक बौद्ध मन्दिर बनवाया था।
  • आदित्य सेन ने ६७५ ई. तक शासन किया था।

आदित्य सेन के उत्तराधिकारी तथा उत्तर गुप्तों का विनाश-

●आदित्य सेन की ६७५ ई. में मृत्यु के बाद उसका पुत्र देवगुप्त द्वितीय हुआ।
● उसने भी परम भट्टारक महाधिराज की उपाधि धारण की। चालुक्य लेखों के अनुसार उसे सकलोत्तर पथनाथ कहा गया है।
  • इसके बाद विष्णुगुप्त तथा फिर जीवितगुप्त द्वितीय राजा बने।
  • जीवितगुप्त द्वितीय का काल लगभग ७२५ ई. माना जाता है। जीवितगुप्त द्वितीय का वध कन्‍नौज नरेश यशोवर्मन ने किया।
  • जीवितगुप्त की मृत्यु के बाद उत्तर गुप्तों के मगध साम्राज्य का अन्त हो गया।

मौखरि वंश:-

●मौखरि वंश का शासन उत्तर गुप्तकाल के पतन के बाद स्थापित हुआ था।
●गया जिले के निवासी मौखरि लोग जो चक्रवर्ती गुप्त राजवंश के समय उत्तर गुप्तवंश के लोगों की तरह सामन्त थे।
●मौखरि वंश के लोग उत्तर प्रदेश के कन्‍नौज में तथा राजस्थान के बड़वा क्षेत्र में तीसरी सदी में फैले हुए थे।
●मौखरि वंश के शासकों को उत्तर गुप्त वंश के चौथे शासक कुमारगुप्त के साथ युद्ध हुआ था जिसमें ईशान वर्मा ने मौखरि वंश से मगध को छीन लिया था।
●मौखरि वंश के सामन्त ने अपनी राजधानी कन्‍नौज बनाई। कन्‍नौज का प्रथम मौखरि वंश का सामन्त हरिवर्मा था। उसने ५१० ई. में शासन किया था। उसका वैवाहिक सम्बन्ध उत्तर वंशीय राजकुमारी हर्षगुप्त के साथ हुआ था। ईश्‍वर वर्मा का विवाह भी उत्तर गुप्त वंशीय राजकुमारी उपगुप्त के साथ हुआ था। यह कन्‍नौज तक ही सीमित रहा। यह राजवंश तीन पीढ़ियों तक चलता रहा
हरदा लेख से स्पष्ट होता है कि सूर्यवर्मा ईशान वर्मा का छोटा भाई था। अवंति वर्मा सबसे शक्‍तिशाली तथा प्रतापी राजा था। इसके बाद मौखरि वंश का अन्त हो गया।



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