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Saturday 24 February 2018

उस्मान अली ख़ाँ (जन्म: 6 अप्रैल, 1886 - मृत्यु: 24 फ़रवरी, 1967) हैदराबाद रियासत के निज़ाम

उस्मान अली
उस्मान अली ख़ाँ
पूरा नाममीर असद अली ख़ान चिन चिलिच खान निज़ाम उल मुल्क आसफ़ जाह सप्तम
जन्म6 अप्रैल1886
जन्म भूमिहैदराबाद
मृत्यु तिथि24 फ़रवरी1967
मृत्यु स्थानहैदराबाद
पिता/मातामहबूब अली ख़ां और अमत-उज-जहरुनिशा
पति/पत्नीदुल्हन पाशा बेगम एवं अन्य
संतानआज़म जाह, मोज्जाम जाह एवं अन्य
उपाधिआसफ़ जाह सप्तम (VII)
शासन कालसन् 1911 से 1948 तक
शा. अवधि37 वर्ष
राज्याभिषेक18 सितम्बर 1911
निर्माणउस्मानिया विश्वविद्यालय
पूर्वाधिकारीमहबूब अली ख़ां
उत्तराधिकारीराजशाही समाप्त
वंशआसफ़जाही राजवंश
समाधिजुड़ी मस्जिद, किंग कोठी पैलेस, हैदराबादतेलंगाना
धर्मसुन्नी (इस्लाम)
अन्य जानकारीएक समय में विश्व के सबसे धनी व्यक्तियों में से एक उस्मान अली ने इटली के बराबर रियासत पर राज्य किया।
उस्मान अली ख़ाँ (अंग्रेज़ीOsman Ali Khan, जन्म: 6 अप्रैल1886 - मृत्यु: 24 फ़रवरी1967) सन् 1911 से 1948 तक हैदराबाद रियासत के निज़ाम (शासक) तथा 1956 तक उसके संवैधानिक प्रमुख थे। एक समय में विश्व के सबसे धनी व्यक्तियों में से एक उस्मान अली ने इटली के बराबर रियासत पर राज्य किया।

जीवन परिचय

निजी तौर पर शिक्षा ग्रहण करने के बाद उस्मान अली ने 29 अगस्त 1911 को छठे निज़ाम महबूब अली ख़ां से हैदराबाद रियासत का पदभार संभाला। वित्तीय सुधारों को बढ़ावा देते हुए वह हैदराबाद रियासत को वांछनीय वित्तीय रूप से सशक्त स्थिति में ले आए; रियासत ने अपनी मुद्रा और सिक्के जारी किए और एक प्रमुख रेल कंपनी का स्वामित्व ग्रहण किया। 1918 में उनके संरक्षण में उस्मानिया विश्वविद्यालयहैदराबादकी स्थापना ही गई। कुछ पड़ोसी राजकुमारों के विपरीत उन्होंने अपनी रियासत का सामंतवादी स्वरूप बनाए रखा और अपनी जनता के बीच बहुसंख्यक हिंदुओं की निरंतर बढ़ती आवाज़ की तरफ़ ख़ास ध्यान नहीं दिया, हालांकि उनका जीवन स्तर सुधारते पर काफ़ी ख़र्च किया। द्वितीय विश्व युद्ध में उसकी रियासत ने नौसैनिक जहाज़ और दो रोयल फ़ोर्स स्कवॉड्रन उपलब्ध करवाए।
उस्मान अली किशोरावस्था में

वैभवशाली सेवानिवृत्ति

अपनी निजी सेना, रज़ाकार सहित मजलिसे इत्तेहास उल मुस्लिमीन (मुस्लिम एकता के लिए आंदोलन) से समर्थन पाकर उस्मान अली ने अंग्रेज़ों के चले जाने की बाद 1947 में भारतीय संप्रभुत्ता के समक्ष समर्पण करने से इनकार कर दिया। अंग्रेज़ों के साथ विशेष गठबंधन की दुहाई देते हुए उन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ में हैदराबाद की पूर्ण स्वतंत्रता का अपना मामला रखा। उन्होंने अपनी सत्ता का समर्पण करने की भारत की चेतावनी को अस्वीकार कर दिया, परंतु सितंबर 1948में भारतीय सैनिकों की शक्ति के सामने उन्हें झुकना पड़ा। उन्हें रियासत का राजप्रमुख बनाया गया, परंतु उन्हें निर्वाचित विधायिका के प्रति जवाबदेह कैबिनेट मंत्रियों की सलाह पर चलना था। यह व्यवस्था 1956के सामान्य सीमा पुनर्गठन के कारण उनकी रियासत के पड़ोसी राज्यों में विलय होने तक क़ायम रही। इसके बाद वह 3 पत्नियों, 42 रखैलों, 200 बच्चों, 300 नौकरों, वृद्ध आश्रितों और निजी सेना सहित वैभवशाली सेवानिवृत्ति का जीवन व्यतीत करने लगे। उन्होंने अपने पूर्व समय के लगभग 10,000 राजकुमारों और दास-दासियों को पेंशन प्रदान की और फ़िलीस्तीन के मुस्लिम शरणार्थियों को सहायता दी।

सम्मान एवं उपाधि


  • 1911 में उन्हें नाइट ग्रैंड कमांडर ऑफ़ द स्टार ऑफ़ इंडिया की उपाधि दी गई
  • 1917 में नाइट ग्रैंड क्रॉस ऑफ़ द ब्रिटिश एंपायर की उपाधि दी गई
  • 1946 में उन्हें रॉयल विक्टोरिया चेन से सम्मानित किया गया।

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